क्या आप जानते है

क्या आप जानते हैं : मन्दिर जी में घंटा क्यों बजाते हैं ?


मन्दिर जी में घण्टा रहता है, उसे क्यों बजाते हैं? घंटा बजाते समय हमारे क्या भाव होने चाहिये ? ये प्रश्न प्रायः मन में उठते अवश्य हैं किन्तु यथार्थ समाधान नहीं मिलने से मन कुण्ठित हो जाता है।


सुनो ! घंटा “मंगल ध्वनि’ के प्रतीक रूप में बजाया जाता है। घंटे की ध्वनि सुनकर दूर के लोगों को भी मन्दिर जी का स्मरण हो जाता है। घंटा बजाते समय हमारे भाव होने चाहिये कि इस घंटे की मंगल ध्वनि तरंगे वहाँ पहुँच जायें, जहाँ हम नहीं पहुँच सकते। ऐसे नन्दीश्वर द्वीप, विदेह क्षेत्र, कैलाश पर्वत आदि उर्ध्व-मध्य-अधोलोक में जितने कृत्रिम-अकृत्रिम जिन-चैत्यालय विद्यमान हैं, जिन तीर्थक्षेत्रों की आपने साक्षात् जाकर वन्दना की हो, उनका ध्यान करते हुए, “उनको यह मेरी वन्दना-नमस्कार पहुँचे। घंटे को हल्के हाथों से तीन बार ही बजाना चाहिये। और घंटा बजाते समय अपना सिर घंटे के नीचे लगभग तीन सेकेण्ड ही रहना चाहिये।

मंदिर जी में लगा घंटा हमारी विशुद्ध भावनाओं को प्रसारित करने के लिये एक “वैज्ञानिक” यंत्र है। भौतिक युग की दूर संचार प्रणाली, ध्वनि प्रसारक यंत्रों के माध्यम से हमारी भाषा- भावनायें एक स्थान से दूसरे स्थान पर सेकेण्डों में पहुँच जाती हैं जैसे पोस्ट ऑफिस में तार करने के लिये एक छोटी सी डिब्बी खटखटाई जाती है। उसमें कोई शब्द नहीं बोले जाते। मात्र डिब्बी खटखटाने के ढंग से ही समाचार एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँच जाता है। ठीक उसी प्रकार से ही घंटे का कार्य है। इसकी मंगल ध्वनि हमारा मानसिक प्रदूषण दूर करती है। आपने अनुभव किया होगा कि जब बच्चा रोता है तब उसे झुनझुने आदि की मधुर ध्वनि सुनाकर चुप किया जाता है।

घंटे की ध्वनि से पर्यावरण भी परिशुद्ध होता है क्योंकि पंचकल्याण के समय घंटे को भी मंत्रों से संस्कारित करके लगाते हैं। आपने देखा होगा, लाल मन्दिर, दिल्ली में एक बहुत बड़ा पुराना घंटा मन्दिर के चौक में एक शो कैस में लगा हैं। उसमें कई प्रकार के मंत्र भी उत्कीर्ण हैं। इसकी ध्वनि से मंत्रों का प्रभाव उद्घाटित होता था। अभी उसका प्रयोग बन्द है। जहाँ तक उसकी ध्वनि का प्रभाव होता था, वहाँ तक शारीरिक-मानसिक-दैविक एवं भौतिक प्रकोप भी हट जाते थे।

मुनि अमित सागर की कृति ‘मंदिर’ से साभार

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