क्या आप जानते है

श्रीफल ओरिजिनल


क्या आप जानते हैं 7 :
अभिषेक के बिना पूजा है अधूरी

भगवान तीर्थंकर का पूजन अभिषेक पूर्वक ही मान्य है और सम्पूर्ण फल की प्राप्ति कराने वाला है। अभिषेक से संसार और मोक्ष सुख, दोनों मिलते हैं। जिन प्रतिमाओं की मंत्रों के माध्यम से प्रतिष्ठा हो गई है, उन तीर्थंकरों-अरिहंत भगवान का अभिषेक होता है। प्रतिष्ठित प्रतिमा पर प्रासुक, सुगंधित जल से मस्तक पर धारा छोड़ना ही अभिषेक है। मूलाचर प्रदीप ग्रंथ में आचार्य सकल कीर्ति देव ने चार प्रकार के अभिषेक बताए हैं- जन्माभिषेक, राज्याभिषेक, दीक्षाभिषेक और प्रतिमाभिषेक।

– तीर्थंकर का जन्म होता है, तब उसे सौधर्म इन्द्र सुमेरु पर्वत ले जाकर पाण्डुक शिला पर अभिषेक करते हैं, उसे जन्माभिषेक कहते हैं। सौधर्म इन्द्र के बाद अन्य इन्द्र अभिषेक करते हैं।

– जब तीर्थंकर बालक का राज्याभिषेक होता है, तो उससे पहले राज्याभिषेक होता हैं। सौधर्म इन्द्र के बाद अन्य इन्द्र अभिषेक करते हैं।

– जब तीर्थंकर बालक दीक्षा ग्रहण करता हैं, तो उससे पहले दीक्षा अभिषेक होता है। यह मनुष्य और देव, दोनों मिलकर करते हैं।

– पाषाण, धातु आदि की प्रतिमा बनाकर उसकी प्रतिष्ठा कर उसे अरिहंत भगवान के रूप में स्थापित किया जाता है। उसके बाद उसका अभिषेक किया जाता है। इस अभिषेक का वर्णन दश भक्ति संग्रह, जम्बूद्वीप पन्नती, त्रिलोकसार आदि ग्रंथों में मिलता है।

किससे करते हैं अभिषेक?

– सागर धर्मामृत में पंचामृत अभिषेक का वर्णन करते हुए कहा गया है कि चार कलशों से, सुगंधित जल, इक्षुरस, घी, दूध, दही से अभिषेक करना चाहिए। इसके बाद चंदन लेपन भी करना चाहिए।

– श्रावकाचार संग्रह प्रथम भाग में कहा है कि दाख़, खजूर, नारियल, ईख, आंवला, केला, आम, सुपारी के रसों से तथा इलायची, लौंग, कंकोल (फल का नाम), चंदन, अगुरू(अगर) के काढ़े से भी अभिषेक किया जाता है।

– हल्दी, चावल के आटा सहित अनेक जडी-बूटियों के मिश्रण से अभिषेक किया जाता है।

अभिषेक का फल

– जल से अभिषेक का फल बताते हुए कहा गया है कि इसे करने वाला देव और मनुष्य द्वारा पूजित है, ऐसा चक्रवर्ती होता है।

– दूध से अभिषेक करने वाला मनुष्य परम कांति का धारक होता है, वह स्वर्ग में देव होता है। वहां से आकर मनुष्य होकर मोक्ष जाता है।

– दही से अभिषेक करने वाला उज्ज्वल यश को प्राप्त होता है और रुका हुआ धन आता है।

– घी से अभिषेक करने वाला स्वर्ग में परम ऋद्धि का धारी देव होकर परंपरा से अनन्त वीर्य को प्राप्त करता है।

– इक्षुरस से अभिषेक करने वाले को अमृत के समान आहार मिलता है, स्वर्ग आदि सुख भोगकर परंपरा से मोक्ष को प्राप्त करता है।

– जिनेन्द्र भगवान का अभिषेक करने वाला स्वयं अभिषेक को प्राप्त होता है।

(अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर महाराज की कलम से )

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