विश्व की प्रायः सभी धर्म संस्कृतियाँ प्रातः काल की ब्रह्मबेला को महत्त्व देती हैं। पर हमें यह नहीं मालूम कि ब्रह्मबेला कहते किसे हैं, इसका क्या महत्त्व है ? सूर्योदय के चौबीस मिनिट पहले से सूर्योदय के चौबीस मिनिट बाद तक का समय ब्रह्मबेला या ब्रह्ममुहूर्त कहलाती है इसे ही आत्म जागरण का समय कहा है। क्योंकि तीर्थकर की वाणी इसी मुहूर्त में खिरती है। जिस प्रकार सरोवर में कमल दल इसी समय खिलते हैं, उसी प्रकार ब्रह्म मुहूर्त में जागने से हमारा हृदय-कमल भी खिल जाता है, जिससे हमारे जीवन में निरोगता का संचार होता है एवं इस समय मन में जो भी शुभ संकल्प लिये जाते हैं, दुहराये जाते हैं। उससे व्यक्ति के अन्दर आत्म विश्वास एवं कार्य करने की दृढ़ क्षमता उद्भूत होती है। प्रातःकाल उठकर क्या विचार करना चाहिये- इस विषय में पं० आशाधर जी ने सागारधर्मामृत ग्रन्थ में लिखा है कि –
ब्रम्हे मुहूर्ते उत्थाय पंच नमस्कार कृते सति ।
कोऽहं ! को मम ! किं निज धर्मः इति विचिन्त्येत् ।।
अर्थात् ब्रम्ह मुहूर्त में निद्रा छोड़कर पंच नमस्कार णमोकार मन्त्र कम से कम नव बार पढ़ना चाहिये। यदि आपके पास समय है तो पूरे एक सौ आठ बार जपना चाहिये।
उसके बाद दोनों हस्त कमलों को जोड़कर, दोनों अंगूठों को छोड़कर, शेष बीच की आठ अंगुलियों के चौबीस पोरों में चौबीस तीर्थंकर के नाम स्मरण करते हुए, हाथों को देखें।
हाथ (कर) दर्शन का महत्त्व अन्य शास्त्रों में भी बताया गया है-
कराग्रे वसते लक्ष्मी, कर मध्ये सरस्वती । कर मूले तु गोविन्दः प्रभाते कर दर्शनम् ॥
अर्थात्, हाथ के अग्रभाग में लक्ष्मी का, मध्य में सरस्वती का एवं मूल भाग में हरि ! प्रभो !! ईश्वर !!! का हाथ (कर) का दर्शन करना चाहिये। निवास है। अतः प्रतिदिन प्रातः काल
उपर्युक्त श्लोक बोलते हुऐ अपने हाथों को देखो । यह मनोवैज्ञानिक एवं अर्थपूर्ण प्रक्रिया है इससे व्यक्ति के हृदय में आत्म-निर्भरता, स्वावलम्बनता की भावना का उदय होता है यदि वह ऐसा नहीं करे तो वह अपने जीवन के प्रत्येक कार्य में दूसरों का मुख देखने का अभ्यासी बन जाता है। अतः संसार में जो भी भला या बुरा कार्य करता है, हाथों से ही करता है। ये हाथ ही धर्म- अर्थ काम एवं मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों की कुंजी है।
मुनि अमित सागर की कृति ‘मंदिर’ से साभार
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