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आत्मा में निर्मल गुणों के समीचीन ज्ञान प्रकट करने की क्षमता और दृढ़ता है: आचार्य श्री वर्धमान सागर की मंगल देशना


सम्यक ज्ञान समीचीन ज्ञान है। समीचीन ज्ञान स्वाध्याय तप संयम के माध्यम से अपनी शक्ति सामर्थ्य को प्रकट करें। इससे सम्यक दर्शन, ज्ञान और चरित्र प्राप्त होता है। समीचीन ज्ञान प्रकट करने के लिए मोह और मिथ्यात्व रूपी अंधकार दूर करना होगा। पढ़िए राजेश पंचोलिया की रिपोर्ट…


उदयपुर। गर्मी का मौसम है। इस मौसम में आप का शरीर संतप्त है, दुखी है। उदयपुर में जो कि झीलों की नगरी है यहां फतेहसागर, उदय सागर और अनेक झीलें हैं। इनके जल से आप शरीर का ताप दूर कर सकते हैं। उदयपुर में भी आत्मा का ताप दूर करने के लिए धर्मरूपी सरोवर के रूप में आचार्य संघ विद्यमान है। संघ सानिध्य में आप आत्मा का ताप दूर कर सकते हैं। यह मंगल देशना राष्ट्र गौरव पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने सेक्टर 4 की धर्म सभा में प्रकट की।

वैराग्य का मार्ग सुखकारी है

ब्रह्मचारी गजू भैय्या, राजेश पंचोलिया और गौरव गनोदिया के अनुसार आचार्य श्री ने बताया कि अज्ञान, मोह, मिथ्यात्व भीतर होने के कारण संसार की अनंत यात्रा पर परिभ्रमण चल रहा है। शास्त्रों में उल्लेख है कि महान आत्माओं ने विशेष ज्ञान-विज्ञान से संसार की दुखमय यात्रा के कारण बताए हैं और इन कथाओं को पढ़कर सुनकर भव्य जीवों ने वैराग्य को धारण किया है। संसार ,शरीर और भोग इन के कारण वैराग्य नहीं होता ,और संसार परिभ्रमण का भी यही कारण है। हममें सुमेरु पर्वत के समान सुदृढ़ता है। वैराग्य का मार्ग सुखकारी है। कर्मों के उदय से मुनिराजों और संसारी प्राणी दोनों को भोजन का अंतराय, भोजन नहीं मिलता है। अज्ञान रूपी अंधकार को ज्ञान रूपी सूर्य प्रकाश से दूर किया जा सकता है।

सम्यक ज्ञान समीचीन ज्ञान है

उन्होंने कहा कि आप लोग आत्मा की शक्ति को भूल गए हैं तप और त्याग का जब उपदेश दिया जाता है तो आप कहते हैं हमारी शक्ति नहीं है। सम्यक ज्ञान समीचीन ज्ञान है। समीचीन ज्ञान स्वाध्याय तप संयम के माध्यम से अपनी शक्ति सामर्थ्य को प्रकट करें। इससे सम्यक दर्शन, ज्ञान और चरित्र प्राप्त होता है। समीचीन ज्ञान प्रकट करने के लिए मोह और मिथ्यात्व रूपी अंधकार दूर करना होगा। आचार्य श्री ने प्रवचन में रात्रि भोजन के दुष्परिणाम बताए हैं। संसार परिभ्रमण क्यों कर रहे हैं इसका चिंतन सभी के लिए जरूरी है। मंदिर जाने के लिए स्वाध्याय सत्संग सुनने के लिए समय नहीं है, शरीर थका हुआ है। अशक्त है किंतु अनेक भव में संसार परिभ्रमण करते हुए आपका मन राग, मोह, मिथ्यात्व के कारण थकान महसूस नहीं करता है। आप विषय भोग मोह में आखंड डूबे हुए हैं। ज्ञान निर्मल गुणों का खजाना है। आत्मा के गुणों को पहचानने का पुरुषार्थ करें चारित्र को प्रकट करें। लौकिक ज्ञान के साथ धार्मिक ज्ञान भी प्राप्त करें। आत्मा में समीचीन ज्ञान प्रकट करने की क्षमता है।

विश्वशांति यज्ञ व श्री जी की निकलेगी शोभायात्रा

इसके पूर्व आचार्य श्री शांति सागर जी एवम् पूर्वाचार्यों के चित्र अनावरण दीप प्रज्वलन महेंद्र जी टाया,श्रीपाल जी धर्मावत, निर्मल कुमार जी मालवी सुमति लालजी दुदावत ने आचार्य श्री के पाद प्रक्षालन नरेश कुमार जी वंदना जी पाडलिया ने संचालन गौरव गनोड़िया राजकुमार अखावत ने किया। झमललाल अखावत अध्यक्ष सुंदरलाल लूणादिया महामंत्री संरक्षक हेमराज मालवीय नाथूलाल खलूदिया ने बताया कि सोमवार सुबह महिलाओं की घट यात्रा, मंडप शुद्धि और ध्वजारोहण किया गया। श्री जी के पंचामृत अभिषेक के पश्चात दोपहर में कल्याण मंदिर विधान पूजन के पश्चात आचार्य श्री वर्धमान सागर जी की पूजन भक्ति भाव से की गई। शाम को महा आरती की गई। मंगलवार को विधान की पूर्णाहुति हवन विश्व शांति यज्ञ तथा श्री जी की शोभायात्रा निकाली जाएगी। उसके पश्चात शिखर पर ध्वजा का परिवर्तन किया जाएगा।

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