बदलाव की बयार

बदलाव की बयार : साधुओं की तपस्या, विद्वानों का ज्ञान और धनाढ्यों का धन मिलने से ही संभव है धर्म की प्रभावना


वर्तमान में नई पीढ़ी जैन धर्म से विमुख हो रहे हैं। इसी का परिणाम है कि हाल में दो ऐसी घटनाएं देखने को मिलीं, जिसमें जैनों ने अन्य धर्म धारण कर लिया। ऐसा डर लगने लगा है कि कहीं जैन धर्म का विलोप ही न हो जाए। श्रीफल जैन न्यूज का  कॉलम बदलाव की बयार में आज इसी विषय पर चर्चा…


जैन धर्म उसके संस्कार, संस्कृति का भविष्य क्या होगा, इस पर अब एक प्रश्न चिह्न खड़ा हो गया है। प्रश्न चिह्न इसलिए भी खड़ा हुआ हुआ क्योंकि जैन बच्चे अन्य धर्म को अपना रहे। हाल ही भोपाल और गाजियाबाद में घटी दो ताजा घटनाओं से सबक लेना चाहिए कि कैसे एक नाबालिग बच्चे और एक जैन परिवार ने मुस्लिम धर्म धारण कर लिया। इसी प्रकार दमोह की भी एक घटना है जहां पर , स्कूल की टीचर ही जैन से मुस्लिम हो गई, मुस्लिम स्कूल में पढ़ाकर। जैन समाज की बड़ी-बड़ी संस्थाएं इस प्रकार की घटनाओं पर मौन धारण कर अपने कर्तव्य से दूर भगाती दिखाई दे रही हैैं। अब भी जैन समाज के कर्णधार और संस्थाएं नहीं चेतीं तो आने वाले समय में व्यक्ति जैन तो लिखेगा पर उसमें जैन संस्कार नहीं होंगे। वह शाकाहारी भी होगा या नहीं, यह कहना बड़ा मुश्किल है। मात्र दो घटनाएं ही नहीं, ऐसी कई घटनाएं होंगी, जिसमें युवाओं जैन धर्म को छोड़ कर अन्य धर्म को स्वीकार कर लिया है। जैन युवा अन्य धर्म के शादी कर रहे तो अपने फोन पर अन्य धर्म के पोस्टर, वीडियो और अन्य संतों के वीडियो शेयर कर रहे हैं। फोन का स्टेटस बना रहे हैं। इसका क्या प्रभाव पड़ेगा आने वाले समय में, यह आप को तय करना है। युवाओं, बच्चों और बड़ों को भी जैन धर्म का सामान्य ज्ञान भी नहीं है।

साधु-संतों, त्यागियों और विद्वानों के प्रति उपेक्षा का भाव

भोपाल और गाजियाबाद की घटना से यह तो स्पष्ट है कि ये दोनों मुस्लिम साहित्य वीडियो, आडियो सुना करते थे और उनका साहित्य पढ़ने के साथ उन लोगों के संपर्क में निरंतर बने रहते थे। आज सब से बड़ी विडंबना यह है कि जैन धर्म में जन्म लेने वाला ही जैन साहित्य से अनजान है और वह यह भी नहीं जानता कि जैन धर्म के सिद्धांत क्या हैं, इसके पीछे कारण है आज समाज में साधु-संतों, त्यागियों और विद्वानों के प्रति उपेक्षा का भाव। आज जैन समाज में धर्म के क्षेत्र में भी धर्मात्माओं को महत्व देने के बजाए धनाढ्य को महत्व दिया जा रहा है, ऐसा नहीं है कि धनाढ्यों को उपेक्षा की जाए। उन्हें भी सम्मान दिया जाए पर धर्मात्माओं को अधिक दिया जाए, जिसे धर्म की गंगा बहती रहेंगी। आज देखते हैं कि हर क्षेत्र में प्रथम आने वाले या अच्छा काम करने वालों का सम्मान किया जाता पर क्या कभी ऐसा किसी बड़ी संस्थान या जैन समाज के कर्णधार में उन व्यक्तियों का बड़े स्तर पर सम्मान किया हो, जो नित्य पूजा, अभिषेक करते हो, आहार देते हो, स्वाध्याय करता हो या साधुओं के विहार में निरंतर अपना समय देता हो। तो आप ही बताएं कैसे युवाओं को प्रोत्साहन मिलेगा इस प्रकार के धर्म कार्य करने का। आचार्य श्री शांति सागर महाराज में एक बार कहा था कि साधुओं की तपस्या, विद्वानों का ज्ञान और धनाढ्यों का धन यह जब तीनों मिलकर काम करेंगे तो ही धर्म की प्रभावना संभव है।

 

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