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चर्चा 6 अपनी संस्कृति सुरक्षित रखना हम सभी की साझी जिम्मेदारी : अपने मूल स्वरूप में जन-जन तक पहुंचाना होगा जैन धर्म का इतिहास


समाज के हर वर्ग में चर्चा है कि हम दिगंबर जैन समाज का इतिहास, संस्कार, संस्कृति, तीर्थंकरों के उपदेश जन- जन तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। समाज में कोई ऐसा मजबूत साधन भी नहीं है, जिसके माध्यम से हम मुनियों और आचार्यों की वाणी, धार्मिक अनुष्ठानों, सामाजिक कार्यक्रमों को जन-जन तक पहुंचा सकें। हम सभी को मिलकर इस ओर कदम बढ़ाने की आवश्यकता है। पढ़िए चर्चा कॉलम में श्रीफल जैन न्यूज की संपादक रेखा जैन का यह विशेष आलेख …


 

समाज के हर वर्ग में चर्चा है कि हम दिगंबर जैन समाज का इतिहास, संस्कार, संस्कृति, तीर्थंकरों के उपदेश जन- जन तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। समाज में कोई ऐसा मजबूत साधन भी नहीं है, जिसके माध्यम से हम मुनियों और आचार्यों की वाणी, धार्मिक अनुष्ठानों, सामाजिक कार्यक्रमों को जन-जन तक पहुंचा सकें। हम सभी को मिलकर इस ओर कदम बढ़ाने की आवश्यकता है। पंथ और संत वाद के चक्कर में पड़कर हमें अपने इतिहास को इधर-उधर नहीं करना है, बल्कि हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हमारा इतिहास अपने मूल रूप में लोगों तक पुहंचे। जन- जन तक पहुंचाने का उद्देश्य यही है कि लोगों के दिल और दिमाग में दिगंबर जैन समाज का अस्तित्व पहुंच जाए। इसके बाद हर एक दिगंबर जैन अपने इतिहास को सुरक्षित रखने में सहयोगी होगा, न कि उसे मिटाने या तोड़ने-मरोड़ने में। इतिहास और व्यक्तिगत विचार अलग-अलग हैं। इन दोनों को मिलाने की कोशिश नहीं होनी चाहिए, तभी हम दिगंबर जैन इतिहास, संस्कार आदि को सुरक्षित रख पाएंगे। आज जरूरत है राष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसे समाचार पत्र या सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की, जो इस कार्य को कर सके। इसके अलावा अभी जो जैन समाचार पत्र-पत्रिकाएं, वेबसाइट्स हैं, वे भी अपना स्वरूप बदलकर दिगंबर जैन समाज के इतिहास, संस्कार आदि को जन- जन तक पहुंचाने का काम कर सकती हैं। ऐसा भी नहीं है कि अभी पत्र-पत्रिकाओं, वेबसाइट्स, किताबों, सोशल मीडिया पर जैन धर्म की चर्चा ही नहीं है, सारी सामग्री आ रही है, बस इसमें थोड़े संशोधन की जरूरत है। वर्तमान परिस्थितियों और महत्ता को देखते हुए इस पर काम करने की आवश्यकता है। समाचारों से अधिक समाज में हो रहे काम पर लेख, रिपोर्ट, प्राचीन कहानी, प्राचीन आचार्य परंपरा, श्रावक-साधु का महत्व को बताने वाले आलेख, बीसवीं सदी की आचार्य परंपरा, तीर्थ, श्रावक की क्रिया आदि के बारे निरंतर प्रकाशन होना चाहिए, तभी हम जैन इतिहास को सुरक्षित रख पाएंगे।

 

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