समाज

मेरी जीवन गाथा : मोक्ष मार्ग पर आरोहण


अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर महाराज के 9वें दीक्षा दिवस पर श्रीफल जैन न्यूज में उन्हीं की कलम से उनकी जीवनगाथा प्रस्तुत की जा रही है। पाठकों को इस लेखनमाला की एक कड़ी हर रोज पढ़ने को मिलेगी, आज पढ़िए इसकी छठी कड़ी….


6. ब्रह्मचर्य व्रत का धारण 

पांच साल, तीन साल यह आंकड़े सामने थे। आर्यिका श्री वर्धित मति माता जी से इसी पर बात हो रही थे। यह आंकड़े थे ब्रह्मचर्य व्रत लेने के, माता जी के लिए पांच के थे और मेरे 3 साल के लिए। ब्रह्मचर्य व्रत बिजौलिया, पार्श्वनाथ में दोनों भैया राजू -विजय की दीक्षा पर 10 फरवरी 1998 को लेना था। 10 फरवरी को आचार्य श्री ने दीक्षा मंच पर मुझे 3 वर्षीय ब्रह्मचर्य व्रत धारण करवाया। इसके साथ ही और चार-पांच बच्चों ने भी ब्रह्मचर्य का व्रत लिया था।

इसमें मनोज जैन पिपलगोन ने भी ब्रह्मचर्य व्रत लिया था। परिवार से आए सभी लोगों ने मुझसे कहा कि देख लो, तुम निभा पाओगे क्या ब्रह्मचर्य व्रत। इसमें शादी नहीं कर सकते, बहुत कठिन है इसकी पालना। मेरा जवाब था कि अभी तो मैं 17-18 साल का हूं और 3 साल बाद 21 का हो जाऊंगा और शादी तो उसके बाद ही होनी है। मन में आया तो व्रत पूरा होने के बाद कर ही लूंगा। शाम को प्रतिक्रमण के समय आचार्य श्री और माता जी ने कहा कि नियम को बराबर निभाना।

माताजी ने प्रतिक्रमण के बाद कहा कि अब जब तक ब्रह्मचर्य का व्रत है, तब तक संघ में ही रहना है। पढ़ाई तो प्राइवेट कर लेना और बाद में जब परीक्षा हो तो देने चले जाना। मैंने मन ही मन में सोचा कि यह कहां फंस गया। मैं माता जी के आगे कुछ नहीं बोला, बस मौन रहा। वास्तविकता तो यही थी कि अभी तक संयम मार्ग पर चलने के लिए कोई विचार था ही नहीं। मात्र 3 साल का ब्रह्मचर्य व्रत पालना था। ब्रह्मचर्य व्रत का अर्थ मैं यही समझता था कि शादी नहीं करना, जो तीन साल तक वैसे भी नहीं होनी थी।

बिजौलिया में आचार्य श्री के साथ मुनि हित सागर जी, मुनि पुण्य सागर जी, मुनि चिन्मय सागर जी, मुनि सौम्य सागर जी, मुनि चारित्र सागर जी और दोनों भैया की दीक्षा हो गई तो मुनि अपूर्व सागर जी, मुनि अर्पित सागर जी, आर्यिका शुभ मति माता जी, आर्यिका सौम्य मति माता जी, आर्यिका सुवैभव मति माता जी, आर्यिका शीतल मति माता जी,आर्यिका प्रेरणा मति माता जी,आर्यिका वंदित मति माता जी, आर्यिका वात्सल्य मति माता जी,आर्यिका वर्धित मति माता जी, आर्यिका विलोक मति माता जी सहित सभी ने व्रत लेने के बाद मुझे आशीर्वाद दिया। कुल मिलाकर सभी के कहने का भाव एक ही था कि संघ में रहकर आचार्य श्री की सेवा करो।

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