श्रीमहावीरजी महामस्तकाभिषेक समाचार समाज

मेरी दुविधा भारी- महावीर कहते है धर्म को महत्व दो, लेकिन अभिषेक के लिए तो धन चाहिए

 

मैं बड़ी दुविधा में हूं। मंदिर जाता हूं तो प्रभु से क्या मांगू…. धन ,वैभव, सम्मान या त्याग और मोक्ष। कुछ समझ में नही आ रहा है। मैने तो गुरु मुख से सुना है कि प्रभु के दर्शन करते समय तो त्याग, मोक्ष के भाव करने चाहिए, पर आज मैं श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र महावीर जी के महामस्तकाभिषेक में गया तो वहां की स्थिति देखकर दुविधा में पड़ गया कि गुरु ,शास्त्र की बात मानूं या जो वातावरण वहां दिख रहा उसके अनुसार चलूं?

किससे अपनी दुविधा के बारे में पुछंू क्योंकि भगवान तो बोलते नही और उनके लघु नंदन साधु देख तो रहे हैं पर बोल नहीं रहे हैं और कुछ लघु नंदन साधु तो महावीर जी तीर्थ क्षेत्र के आस-पास होने के बाद भी वहां पहुंच नहीं पाए। नहीं पहुंचने के सब अपने-अपने कारण बता रहे हैं, पर जो सुना है वो यह है कि महावीर जी वालों ने एक लघु नंदन साधु को छोड़ कर किसी को निमंत्रण नही दिया।

यह देख और सुन कर तो और दुविधा में पड़ गया हूं कि यह क्या हो रहा है। 24 साल बाद अभिषेक और उसमे भी महावीर के सभी लघु नंदनों को आमंत्रण नहीं दिया गया। कहां जा रहा जैन धर्म और इसके सिद्धांत व संस्कार? कब वह देख पाएंगे अभिषेक? आयोजन कमेटी कहती है कि महावीर के लघु नंदनों की इतनी व्यवस्था नहीं कर सकते हैं।

वहां बैठने की व्यवस्था नहीं है, पर मन नही मानता है। जब 100 से 200 श्रावक मंदिर परिसर में जा सकते हैं। वह बैठ कर फोटोग्राफी कर सकते है तो क्या महावीर के लघु नंदन कुछ समय बैठकर कर अभिषेक नही देख सकते हैं।

चलिए उनकी छोड़िए। जिस श्रावक के पास धन का अभाव है, वह अभिषेक भी नहीं कर सकता है। मान लिया कि जैन धर्म कर्म सिद्धांत में विश्वास करता है। जिनके पूर्व भव के कर्म अच्छे थे, उनके पास है धन और वैभव है, लेकिन क्या इसीलिए सिर्फ उन्हें ही भगवान के अभिषेक का सौभाग्य मिलना चाहिए।

जिनके पास धन नहीं है, आखिर वे कब प्रभु का अभिषेक कर अपने कर्मो की निर्जरा करेंगे? और फिर आयोजन कर रहे लोग आखिर क्यों एक बड़े वर्ग को अभिषेक से वंचित कर अपने कर्म बांध रहे हैं।

हे प्रभु! मैं तो इसीलिए दुविधा में हूं कि आखिर क्या मांगू आप से? धन-वैभव या त्याग और मोक्ष क्योंकि जब महावीर के लघु नंदन साधुओं को आमंत्रण नहीं है तो लग रहा है कि त्याग, साधना, संयम के आगे धन बलवान हो गया है।

करोड़ांे रुपया धनाढ्य लोगांे की व्यवस्था में पूरा हो रहा है। आखिर कब धार्मिक आयोजनों में वीआईपी कल्चर समाप्त होगा और कब धार्मिक त्यागी लोगों को धार्मिक अनुष्ठानों में महत्व दिया जाएगा?

शिकायत यह भी आ रही है कि आयोजन कमेटी ने अपने लोगों के लिए विशिष्ट कलश रखा है ताकि अपने परिचित को बिना किसी धन खर्च के अभिषेक करवा सके…. तो क्या आयोजन कमेटी ऐसा नहीं कर सकती थी की जो निरंतर साधुओं की सेवा, आहार, विहार में रहते हैं, जिन्होंने प्रतिमा नियम व्रत ले रखे हैं उन्हें विशिष्ट आमंत्रण दिया जाता और उनसे अभिषेक करवाया जाता।

मैं अभी भी दुविधा में हूं कि क्या मांगू प्रभु से? सात हजार से ज्यादा लोगांे ने जनमंगल कलश खरीदा उसमें भी 120 लोग ही कर पाए अभिषेक। इन सब को देखकर लगा कि धर्म पर धन हावी है और महावीर भगवान के आयोजन पर उनके ही सिद्धांतों को भुलाया जा रहा है।

देश के महान आचार्य, प्रबुद्ध लोग कोई ऐसा रास्ता नहीं निकाल पाए की साधुओं को कम से कम एक दिन का अभिषेक तो दिखा सकते और आम जनता को प्रभु के अभिषेक या चरण स्पर्श करने का अवसर मिल सकता।

मैं तो अभी भी दुविधा में हूं कि किससे पूछूं…. प्रभु से क्या मांगू? मैं तो यह सोच रहा हु की आगे आने वाली पीढ़ी पर क्या असर होगा। वह प्रभु से क्या मांगे, धन या धर्म? क्या इस प्रकार के वीआईपी कल्चर से महावीर के सिद्धांतो को जन जन तक पहुंचाया जा सकता है? मुझे तो लगता है आयोजन कमेटी को एक बार फिर से विचार करना चाहिए और कुछ ऐसा मार्ग अभी भी निकालना चाहिए कि महावीर के लघु नंदन साधु और श्रावक अभिषेक देख और कर सकें। गलतियां तो सब से होती है पर उन्हें स्वीकार कर सुधारना ही धर्म और समझदारी है।

महावीर भगवान कहते हैं धर्म को महत्व दो और अभी देखकर लगता है कि महावीर भगवान तक पहुंचने के लिए धन चाहिए, धर्म नहीं। यह कितना सच है यह तो आप स्वयं ही नजर घुमाकर कर देखेंगे तो दिखाई देगा मुझ पर विश्वास मत करना।

महावीर का शिष्य श्रेणिक दुविधा में की दूसरी कड़ी भी पढ़े 

मेरी दुविधा भारी-श्रावकों के लिए सारे इंतजाम और साधुओं को निमंत्रण भी नहीं

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भगवान महावीर का शिष्य श्रेणिक

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श्रीफल जैन न्यूज टीम

महावीर का शिष्य श्रेणिक दुविधा में की दूसरी कड़ी भी पढ़े 

मेरी दुविधा भारी-श्रावकों के लिए सारे इंतजाम और साधुओं को निमंत्रण भी नहीं

 

 

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