संत परिचय

संत परिचय-6 : आज पढ़िए आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज का परिचय


श्रीफल जैन न्यूज की ओर से जैन संतों और साध्वियों की परिचय की श्रृंखला शुरू की जा रही है। जैन धर्म में मुनि बनना एक बहुत साहसिक और वैराग्य पूर्ण कार्य है। हर कोई व्यक्ति मुनि नहीं बन सकता। जैन दर्शन में मुनियों के आचार- विचार और दिनचर्या पर बहुत ही स्पष्ट और सख्त नियम बनाए हैं। श्रीफल जैन न्यूज का उद्देश्य है कि इस श्रृंखला के जरिए पाठक जान सकें कि जैन धर्म जीवन जीने की कला है। यह अध्यात्म और विज्ञान पर आधारित जीवन मार्ग है और इनके बारे में पढ़कर लोग धर्म की राह पर चल सकें। इसी श्रृंखला की छठवीं कड़ी में आज प्रस्तुत है वात्सल्य वारिधि भक्त परिवार के राजेश पंचोलिया की कलम से आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के बारे में…


इस वर्ष आषाढ़ शुक्ला 2 दूज, 20 जून से 25 जून 2023 को आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज का 34वां आचार्य पदारोहण वर्ष समारोह मनाया जा रहा है। पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री 24 जून, 1990, आषाढ़ सुदी दूज 2 को यह पद धारण किया था। भरत चक्रवर्ती के नाम पर अवतरित भारत देश में राज्य मध्यप्रदेश में कई भव्य आत्माओं ने अवतरित होकर श्रमण मार्ग अपनाया है। इसी राज्य के खरगौन जिले के सनावद नगर, जो कि सिद्ध क्षेत्र श्री सिद्धवरकूट, श्री सिद्धक्षेत्र पावागिरी ऊन, श्री सिद्ध क्षेत्र चूलगिरी बावनगजा बड़वानी के निकट है, से करोड़ों मुनि मोक्ष गए हैं।

प्रातः स्मरणीय प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवर्ती परमपूज्य 108 आचार्य श्री शांतिसागर जी गुरुदेव की अक्षुण्ण पट्ट परम्परा में तृतीय पट्टाधीश आचार्य श्री धर्म सागर जी से दीक्षित जिनधर्म प्रभावक, राष्ट्र गौरव पंचम पट्टाधीश वात्सल्य वारिधि 108 आचार्य श्री वर्द्धमान सागरजी सहित 17 साधुओं, ब्रह्मचारी- ब्रह्मचारिणी, अनेक प्रतिमा धारी की गौरवशाली जन्म भूमि, कर्म भूमि, समाधि भूमि पवित्र धर्म नगरी सनावद में पर्युषण पर्व के तृतीय उत्तम आर्जव दिवस पर एक प्रतिभाशाली कुल परिवार नगर का मान बढ़ाने वाले यशस्वी बालक यशवंत का जन्म माता श्रीमती मनोरमा देवी जैन की उज्जवल कोख से हुआ। आपके पिता श्री कमल चंद जी जैन उपजाति पोरवाड़ से हैं। 18 सितम्बर, 1950 भाद्रपद शुक्ल सप्तमी संवत 2006 को अवतरित होनहार भाग्यशाली सौभाग्यशाली पुत्र के पूर्व 8 पुत्र, 4 पुत्रियां असमय काल का ग्रास हुईं। जब आपकी उम्र मात्र 12 वर्ष की थी, तब आपकी माता जी का असामयिक निधन हुआ।

मोक्ष के मार्ग पर
आपने सन् 1964 में श्री बावनगजा बड़वानी में आचार्य श्री विमल सागर जी महाराज और आचार्य श्री महावीर कीर्ति जी महाराज के दर्शन किये। सन् 1964 में तृतीय पट्टाधीश आचार्य श्री धर्म सागर जी महाराज के सनावद में मुनि अवस्था के दर्शन किये।

व्रत -नियम

-सन् 1967 में श्री मुक्तागिर सिद्ध क्षेत्र में आर्यिका श्री ज्ञानमति माताजी से आजीवन शूद्र जल त्याग और 5 वर्ष का ब्रह्मचर्य व्रत लिया ।
-जनवरी 1968 बागीदौरा राजस्थान में आचार्य श्री विमल सागर जी महाराज से आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार किया।
-ग्राम करावली में सर्व प्रथम आचार्य श्री शिव सागर जी के दर्शन किये। सनावद वासियों के साथ श्री गिरनार जी एवं बुंदेलखंड की तीर्थ यात्रा कर बालक यशवंत वापस सनावद आ गए।
-सन् 1968 को श्री यशवंत पुनः ग्राम पालोदा में आचार्य श्री शिव सागर जी के दर्शन हेतु गए।

गृह त्याग

मई 1968 से आप संघ में शामिल हो गए। भीमपुर जिला डूंगरपुर में आपने द्वितीय पट्टाधीश आचार्य श्री शिव सागर जी महाराज से गृह त्याग का नियम लिया।

दीक्षा हेतु श्रीफल भेंट

बाल ब्रह्मचारी श्री यशवंत जी ने मात्र 18 वर्ष की उम्र में फागुन कृष्णा चतुर्दशी, संवत 2025 सन् 1969 को श्री महावीर जी में आचार्य श्री शिव सागर जी महाराज को मुनि दीक्षा हेतु श्रीफल चढ़ा कर निवेदन किया। गुरुदेव के आदेश से अगले दिन श्री सम्मेदशिखर जी की यात्रा पर गए। आचार्य श्री शिव सागर जी महाराज की अनायास समाधि फागुन कृष्णा 30 संवत 2025 को श्री महावीर जी में होने के कारण पुनः नूतन आचार्य तृतीय पट्टाधीश आचार्य श्री धर्म सागर जी महाराज को दीक्षा हेतु श्रीफल भेंट किया।

मुनि दीक्षा

तृतीय पट्टाधीश नूतन आचार्य श्री धर्म सागर जी महाराज ने श्री महावीर जी में फागुन शुक्ल 8 संवत 2025, 24 फरवरी 1969 को 6 मुनि, 3 आर्यिका तथा 2 क्षुल्लक, कुल 11 दीक्षाएं आपके सहित दीं। अब ब्रह्मचारी श्री यशवन्त मुनि दीक्षा धारण कर मुनि श्री 108 वर्धमान सागर जी महाराज बन गए।

उपसर्ग – नेत्र ज्योति जाना

श्री महावीर जी से आचार्य श्री धर्म सागर जी महाराज का विहार जयपुर, खानिया जी हुआ। ज्येष्ठ शुक्ला 5 पंचमी संवत 2025, सन, 1969 को अनायास नव दीक्षित मुनि श्री वर्धमान सागर जी महाराज की नेत्रों की रोशनी चली जाती है। उस समय उनकी उम्र मात्र 19 वर्ष थी। उसी समय डॉक्टर बुलाये गए। अगले दिन डॉक्टरों ने नेत्रों का परीक्षण किया। डॉक्टरों ने परामर्श दिया कि बिना इंजेक्शन लगाए नेत्र ज्योति आना नामुमकिन है। संघ में विचार विमर्श होने लगा कि मात्र 19 वर्ष की उम्र में इतना उपसर्ग, क्या किया जाए। दीक्षा छेद कर डॉक्टरी इलाज कराने की भी चर्चा चली। मुनि श्री वर्धमान सागर जी महाराज के कानों में चर्चा पहुंचने पर उनहोंने कहा कि मैं इंजेक्शन नहीं लगवाउंगा, प्रसंग आने पर समाधि ले लूंगा। मुनि श्री वर्धमान सागर जी महाराज ने 49 घंटे के बाद 1008 श्री चंद्र प्रभु की वेदी पर मस्तक रख कर पूज्य पाद रचित श्री शांति भक्ति का पाठ स्तुति प्रारम्भ की। 52 घण्टे बाद प्रभु भक्ति के प्रभाव से बिना डॉक्टरी इलाज के नेत्र ज्योति वापस आ गई। उस घटना के समय आचार्य श्री धर्म सागर जी सहित 17 मुनि, 25 आर्यिकाएं, 4 क्षुल्लक एवं 1 क्षुल्लिका सहित 47 साधु विराजित थे। परमपूज्य आचार्य श्री पूज्यपाद स्वामी जी आकाश गमनी विद्या से आकाश में गमन कर रहे थे। सूर्य की प्रचंड तेज रोशनी से आचार्य श्री की नेत्र ज्योति जाने पर श्री पूज्य पाद स्वामी ने श्री शांति भक्ति की रचना कर नेत्र ज्योति वापस पाई थी। उसी पवित्र शांति भक्ति के पाठ से परम पूज्य मुनि श्री वर्धमान सागर जी महाराज की नेत्र ज्योति वापस आई।

आचार्य पद

चारित्र चक्रवर्ती प्रथमचार्य श्री 108 शांति सागर जी महाराज की अक्षुण्ण पट्टपरम्परा के चतुर्थ पट्टाचार्य श्री 108 अजित सागर जी महाराज के पत्र के माध्यम से लिखित आदेश अनुसार पारसोला राजस्थान में 24 जून, 1990 आषाढ़ सुदी दूज को आचार्य पद गुरु आदेश के अनुसार दिया गया। वर्ष 1969 से वर्ष 2022 तक विभिन्न तीर्थ क्षेत्रों, अतिशय क्षेत्रों, प्रदेश राजधानियों, महानगरों, सिद्ध क्षेत्रों, निर्वाण भूमियों आदि में चातुर्मास किये।

दीक्षा
आचार्य श्री वर्धमान सागर जी गुरुदेव ने अभी तक 105 दीक्षाएं दी हैं।

मुनि दीक्षा – 36
आर्यिका दीक्षा – 41
ऐलक दीक्षा -1
क्षुल्लक दीक्षा – 14
क्षुल्लिका दीक्षा- 13

आचार्य श्री और उदयपुर

वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने उदयपुर में चौथी बार प्रवेश किया है। सबसे पहले फरवरी 1992 में अशोक नगर आयड़ तथा अन्य उप नगरों उदयपुर में प्रवेश किया। 20 फरवरी, 1992 को उदयपुर से गुजरात यात्रा के लिए विहार किया। इसके बाद 26 मई, 1996 को सेक्टर 11 श्री आदिनाथ मंदिर में पंचकल्याणक हेतु आप संघ सहित उदयपुर पधारे। फिर 17 जुलाई, 1996 को आचार्य पदारोहण उदयपुर में मनाया गया। एक जुलाई, 2002 को आचार्य श्री वर्धमान सागर जी का पुनः उदयपुर आगमन हुआ। 12 जुलाई, 2002 को आचार्य पदारोहण दिवस हूमड़ भवन में मनाया गया तथा चातुर्मास कलश स्थापना सर्व ऋतु विलास मंदिर जी में की। आचार्य श्री के सानिध्य में गुरु मंदिर का निर्माण कर शिक्षा गुरु आचार्य कल्प श्रुतसागर जी ग्रन्थालय की स्थापना की गई। इसके बाद 18 दिसंबर, 2002 के बाद उदयपुर से विहार हुआ। वर्ष 2023 में 2 अप्रैल को उदयपुर के इतिहास में भव्य मंगल प्रवेश हुआ। आपके सानिध्य में महावीर जयंती मनाई गई। उदयपुर के संपूर्ण नगर के सभी धर्म समाज द्वारा नागरिक अभिनंदन कर आचार्य शिरोमणि की उपाधि से आपको अलंकृत किया गया। वर्ष 2023 में आचार्य श्री ने सर्व ऋतु विलास में तथा सेक्टर 11 में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा भव्य रूप से संपन्न कराई।

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