कविता

लव जिहाद और धर्मांतरण पर विशेष कविता : जो बिटिया अपनों को ठुकराती है


कविता कॉलम में आज पढ़िए बेटियों और लव जिहाद पर लिखी एड. अमित कुमार जैन चन्देरी की कविता


दुश्मन की बातों में आके, अपनों को ठुकराती है !
छोड़के अपना वंश जो बिटिया, वंश दूसरे जाती है !!
अपनी संस्कृति तजके, दुश्मन की संस्कृति अपनाती है!
“आफताब” टुकड़े करते हैं, “फ्रिज” में रखी जाती है !!
मात-पिता की पाक मुहब्बत, जो बिटिया ठुकराती है!
जो बात फरेबी करते हैं, उनकी बातों में आती है !!
दुश्मन के हाथों अपना तन, स्वयं सौंपने जाती है !
अपने तन पे वो बिटिया, खुद ही “आरी” चलवाती है!!
अपने-अपने मात-पिता को, जो बिटिया बिसराती है!
अपने झूठे सुख की खातिर, छोड़के घर जो जाती है !!
क्षण भर का झूठा सुख पाके, चैन नहीं वो पाती है!
“साहिल” जैंसे दुश्मन के, पत्थर से कुचली जाती है !!
छोड़के अपनों को जो बिटिया, दुश्मन को अपनाती है!
हरदम विजय तुम्हारी चाहे, उनको जो हरवाती है!!
मरने की धमकी देकर, जो अपनों को ही डराती है!
इकदिन टुकड़े-टुकड़े” होकर, कानन फेंकी जाती है!!
धर्म सनातन में बिटिया को, देवी माना जाता है !
माता का दर्जा देकर, वामा को पूजा जाता है !!
इस सम्मान को तजके जो भी, दुश्मन को अपनाती है !
“साने” खंड-खंड करते हैं, “कुकर उबाली” जाती है!!

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