कविता

कविता : जगत पूज्य की महिमा

 

-सौरभ जैन भयंकर चंदेरी

इशूरवारा की धरती पर जन्म हुआ था गुरुवर का अद्भुत पुण्य उदय में आया, धारा भेष दिगंबर का

जय जयकार हुई ऐसी कि जयकुमार ही नाम हुआ विद्या गुरु की शरण मिली तो फिर जीवन सुखधाम हुआ

शांति देवी की गोद में खेले रूप पिता की छाया में आगम के अनुरागी थे सो लिप्त हुए ना माया में

दर्श किए विद्या गुरु के वैराग्य स्वयं में धार लिया मुनि दीक्षा को धारण करके हम सब का उद्धार किया

भक्तों का उद्धार किया वचनों के सिद्धि दायक है यही मुक्ति के पंथ प्रदर्शक निजता के अनुशासक हैं

देव चरण मे आकर जिनके अपना माथा धरते हैं जगतपूज्य उन गुरुचरणों में हम सब वंदन करते हैं

भजकर जिनका नाम हजारों मनुज धन्य हो जाते हैं गौशाला से विद्यालय तक जो निर्माण कराते हैं

गंदोधक से मिट जाते हैं कितने कष्टों के अंबार जिनके समाधान से मिलती जिनवाणी की अमृत धार

सांगानेर चांदखेड़ी में जिन प्रतिमा अवतरित हुई सब जीवों पर कृपा दृष्टि भी जिनवर की अनवरत हुई

ललितपुर में सहत्रकुट बिजोलिया गगन बिहारी है गोलाकोट के बड़े बाबा भी कितने अतिश्यकारी हे

जबलपुर हनुमान ताल भक्तांबर के स्वर गूंज रहे सिरोंज नारेली चमलेश्वर नाम शिखर को चूम रहे

थूबोन जी का बदला नक्शा खड़े बाबा चमत्कारी है जगत पूज्य के पावन चरणों की महिमा भी न्यारी है

देवगढ़ के कण कण में अतिशय दिखे अपार हे पुण्योदय से शवोदय तक तीर्थों की बहार है

श्रमण संस्कृति संस्थान ने धर्म का परचम लहराया चैतनोदय भी आपकी कृपा से गुरुवर हे पाया

तीर्थों के उद्धारक हैं जिज्ञासा का समाधान यही संस्कार शिविर के प्रेरणा श्रोत्रहम सबके भगवान यही

चरणों में अर्पित शब्दों की गुणमाला गुरुवर करे प्रणाम जगत पूज्य के दर्शन से मिल जाते है चारों ही धाम

क्या होती है गुरु की भक्ति कैसे गुरु का ध्यान करें हनुमान तुम विद्या गुरु के विद्या गुरु में राम मिले

गुरुवर के पग धरे भाल पर सारे तीर्थ दिखाते है नयनों से जल अर्पित करके तीर्थ बंधन कर जाते है

जिनकी दहाड़ सिंह सारिकी कड़वा सच जो कहते हैं मगर गुरु की शरण मिले तो बालक बनकर रहते हैं

विद्या गुरु के सुधा सिंधु के हम सब गुण को गाते हैं जो गुरुवर को ध्याते हैं वह गुरुवर के हो जाते हैं

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