कथा सागर

कथा सागर 12: मुनि तिरस्कार से होगा विद्या का नाश

पद्म पुराण के पर्व – पांच में मुनि के तिरस्कार के फल को बताने वाली कथा का वर्णन है। उस कथा का सारांश यहां आप सबको बता रहा हूं।

विद्याधर राजा विद्युदृष्ट्र अपने विमान से जा रहा थे। तभी उसने संजयत मुनि को ध्यान में देखा। यह देखकर उसे तत्काल अपने पूर्वभव का बैर याद आ गया। मुनि अपनी ध्यानस्थ अवस्था में निश्चलय खड़े थे। पर राजा विद्युदृष्ट्र ने मुनि को उठाकर पंचगिरी पर्वत पर लाकर गिरा दिया और वहां उपस्थित लोगों से कहा कि इसे मारो, इसका तिरस्कार करो।

राजा के कहने पर लोगो ने उन्हें मुक्के, पत्थर आदि से मारा। मुनि समता भाव से उपसर्ग समझ शांत भाव से ध्यान करते रहे। उन्होंने तनिक भी क्रोध नहीं किया। मुनिराज ने उपसर्ग को जीतकर केवलज्ञान को प्राप्त किया। तभी सब देव केवलज्ञान की पूजा करने आए। उसी समय धरणेन्द्र देव को पता चला कि सब विद्याधर ने उपसर्ग किया, तो धरणेन्द्र ने सबको नागपास से बांध दिया।

तब उन्होंने कहा कि यह सब अपराध राजा विद्युदृष्ट्र का है। तब धरणेन्द्र देव ने सब राजाओं को छोड़ दिया। राजा विद्युदृष्ट्र की सभी विद्या छीन (हर) ली और उसे छोड़ दिया। राजा ने धरणेन्द्र से पूछा कि मुझे विद्या वापस कैसे मिलेगी? तब धरणेन्द्र ने कहा कि संजयत मुनिराज की प्रतिमा के पास महान तप करने से तुम्हारी विद्या वापस सिद्ध होगी, परंतु चैत्यालय एवं मुनियों का उल्लंघन करने से विद्या का नाश हो जाएगा, इसलिए तुम्हें उनकी वंदना करके आगे जाना होगा।

इस कहानी से सीख मिलती है कि जीवन में किसी भी परिस्थिति में मुनियों का तिरस्कार और उनकी निंदा नहीं करनी चाहिए।

अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज की डायरी

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