कथा सागर

प्रभु का संरक्षण : सुख हो या दुख ईश्वर हर स्थिति में हमारे साथ हैं-प्रियंका संजय सेठी


कथा सागर में पढ़िए कहानी प्रभु का संरक्षण। इस कहानी का नैतिक मूल्य यही है कि सुख हो या दुख, ईश्वर हर स्थिति में हमारे साथ रहते हैं। अगर दुख में भी हम अपनी राह से भटकें नहीं तो वह हमें एक बच्चे की तरह दुलार देते हैं।


प्रभु का संरक्षण
एक संत रेत पर चले जे रहे थे। जब वह काफी आगे तक चले आए तो सहसा उनकी नजर पीछे की ओर चली गयी। उन्होंने पीछे मुडक़र देखा तो यह देखकर हैरान रह गए कि रेत पर तो वह अकेला चल रहे थे किंतु पीछे-पीछे चार पैरों के निशान थे। आश्चर्य से संत इधर-उधर देखने लगे और सोचने लगे। किसी के दर्शन नहीं हुए तो उन्होंने स्वयं से प्रश्न किया, जब मेरे कठिनाई भरे दिन थे, मैं अत्यंत मुसीबत में था, मुझसे कोई बात तक करना पसंद नहीं करता था। तब भी मैं अक्सर इस रेत पर चलता था और तब मुझे कभी भी अपने पीछे चार पैर नजर नहीं आये। रेत पर केवल मेरे पदचिह्नों की ही छाप होती थी। तो इसका क्या यह अर्थ हुआ कि मुसीबत में ईश्वर भी साथ छोड़ देता है। आज मैं सुखी और प्रसन्न हूं तो वह मेरे साथ-साथ चला आ रहा है।

यह विचार आते ही संत को आकाशवाणी सुनाई दी, ‘नहीं, बेटा नहीं, तुम गलत सोच रहे हो?’ आकाशवाणी की आवाज पर संत ने कहा, ‘तो फिर सच क्या है? आप ही बताइए।’ संत के कानों से आवाज टकरायी, ‘जब तू सुख में होता है, मैं तेरे साथ चलता हूं। ऐसे में दो पांव के निशान तुम्हारे और दो मेरे। मुसीबत में जब तुझे सब छोड़ गये थे, मैंने नहीं छोड़ा, उस समय मैं तुम्हें अपनी गोद में लेकर चलता रहा। तुम्हें मां जैसा प्यार और वात्सल्य देता रहा, तुम्हें सुख की छांव देता रहा। उस दुख के समय तुम्हारे पांव के निशान तो रेत पर पड़े ही नहीं। मैं तुझसे कभी विमुख नहीं हुआ, मुसीबत में भी नहीं।’ यह सुनकर संत के कानों से फिर आवाज़ टकरायी, ‘हां लेकिन इतना अवश्य याद रखना कि मुसीबत और पीड़ा में कभी हिम्मत न हारना, यह न कहना कि मेरे साथ कोई नहीं है। मैं हर पल तुम्हारे साथ हूं। दुख और पीड़ा जीवन का हिस्सा हैं, यदि तुम उन्हें धैर्य और शांतिपूर्वक सामान्य तरीके से हल करोगे तो जीवन में सफलता पाओगे और यदि विचिलत होकर गलत मार्ग पर बढ़ोगे तो मेरी गोद से गिर पड़ोगे, फिर तुम्हें मैं नहीं बचा पाऊंगा। मैं तब तक तुम्हारे साथ हूं जब तक तुम नेकी, ईमानदारी और मेहनत से अपना काम करते हो।’ इसके बाद आकाशवाणी की गूंज समाप्त हो गयी।

इस कहानी का नैतिक मूल्य यही है कि सुख हो या दुख, ईश्वर हर स्थिति में हमारे साथ रहते हैं। अगर दुख में भी हम अपनी राह से भटकें नहीं तो वह हमें एक बच्चे की तरह दुलार देते हैं।

प्रियंका संजय सेठी

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