कथा सागर

कथा सागर 11 : अंजना को मिला प्रतिमा के अपमान का फल 

बच्चों आज कहानी है हनुमान जी की मां अंजना की। यह कहानी पद्मपुराण के पर्व 17 में है। मुझे विश्वास है कि आप सब इस कहानी को सुनने के लिए बेचैन होंगे।

क्या आप सब जानते हैं कि अंजना जब गर्भवती थी तो उन्हें जंगल-जंगल भटकना पढ़ा था। वहीं जंगल में स्थित एक गुफा में हनुमान का जन्म हुआ था। आखिर उन्हें क्यों जंगल मे रहना पड़ा? अगर आप नहीं जानते हैं तो मैं आपसब को बताता हूं।

अंजना अपने पूर्व जन्म में कनकोदरी पटरानी थी। उसने अपनी सौतन पर क्रोध कर चैत्यालय से जिनेन्द्र भगवान की प्रतिमा को बाहर रखवा दिया। इसी बीच वहां आहार के लिए आर्यिका संयमश्री माता जी आ गई। माताजी प्रतिमा का अविनय देखकर दु:खी हुई, तो उन्होंने आहार नहीं किया। माताजी ने दया भाव से कनकोदरी पटरानी को धर्म का उपदेश दिया, जिसके प्रभाव से उसने श्रावक धर्म को स्वीकार कर शक्ति अनुसार तप करने का संकल्प किया। फिर कनकोदरी पटरानी ने जिनेन्द्र भगवान की प्रतिमा को वापस चैत्यालय में विराजमान करवाया।

तो अब समझे आप! बच्चों, कनकोदरी पटरानी को कुछ समय के लिए जिनेन्द्र भगवान की प्रतिमा वेदी से बाहर करने का फल यह मिला कि उसे अपने पति और पिता दोनों के घर से अपमानित होकर निकलना पढ़ा। फिर जंगल-जंगल भटकना पढ़ा। तो इस कहानी से यह सीख लेना चाहिए कि कभी भी जिनेन्द्र भगवान का अपमान नहीं करना चाहिए।

अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज की डायरी

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