Uncategorized हमारी संस्कृति और पर्व

जैन धर्म में साधु की सबसे कठिन तपस्या होती है केशलोच।

जैन धर्म में साधु की सबसे कठिन तपस्या होती है

जैन धर्म की कठिन तपस्या का एक अनिवार्य हिस्सा और मूलगुण है केशलोंच। जैन साधु अपने आत्मसौंदर्य को बढ़ाने के लिए कठिन साधना करते हैं। जैन संत जब अपने हाथों से घास- फूस की तरह सिर, दाढ़ी व मूंछ के बाल को आसानी से उखाड़ देते हैं तो यह पल देखते ही कई श्रद्धालु भाव विभोर हो जाते हैं। इस कठिन तपस्या के जरिए जैन साधु में शरीर की सुंदरता का मोह खत्म हो जाता है। जैन साधु जब केशलोंच करते है तो आत्मा की सुंदरता कई गुना बढ़ जाती है। यहीं से संत का संतत्व निखरकर कुंदन बनता है। ऐसा नहीं है कि अपने हाथों से सिर के बाल, मूंछ और दाढ़ी के बाल तोड़ना एक बार की विधि हो। साल में तीन से चार बार केशलोंच की परम्परा होती है। जैन संत अहिंसा व्रतों के पालन के साथ ही शरीर से राग भाव को भी हटाते है।

 

दो से चार माह में एक बार केशलोंच

दिगंबर जैन संत एक केशलोंच करने के बाद दूसरा केशलोंच दो माह व अधिकतम चार माह में करते हैं। यानी केश के बड़े होते ही वह लोंच कर देते हैं। जैन संतों की तपस्या का यह अनिवार्य हिस्सा है। दीक्षा लेने के बाद हर साधु को इस कठिन तपस्या से गुजरना होता है। केशलोंच करने के पीछे एक कारण यह भी है कि साधु किसी पर अवलंबित नहीं होते हैं। वह स्वावलंबी होते हैॆ। साधु शरीर की सुंदरता को नष्ट करने और अहिंसा धर्म का पालन करने के लिए केशलोंच करते है। लेकिन जब यह केशलोंच करते है तो इनके चेहरे पर मुस्कुराहट देखने को मिलती है। वहीं दूसरी तरफ श्रद्धालुओं का चेहरा भाव विभोर हो जाता है। बालों को उखाड़ते समय संत को उफ तक करने की इजाजत नहीं है। जैन संत का केशलोंच कार्यक्रम कई बार तो पहले से ही निर्धारित होता है, लेकिन कई साधु इसे आकस्मिक भी करते हैं। साधु संत के केशलोंच कार्यक्रम को देखने के लिए दूर दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं।

 

कंडे की राख का उपयोग

जैन साधु सिर, दाढ़ी व मूंछ के बालों को निकालते समय कंडे की राख का उपयोग करते हैं ताकि खून निकलने पर रोग न फैले। पसीने के दौरान हाथ फिसल न जाए। केशलोंच करने के दौरान बालों को हाथों से खींचकर निकाला जाता है। अपने हाथों से बालों को उखाड़कर दिगंबर जैन संत इस बात का परिचय देते हैं कि जैन धर्म कहने का नहीं, सहने का धर्म है।

 

जीवों के कष्ट पहुंचने का प्रायश्चित भी

बालों को उखाड़ने से बालों में होने वाले जीवों का जो घात हुआ है। उन्हें जो कष्ट हुआ है, उसका प्रायश्चित भी संत करते हैं। आचार्य, उपाध्याय व साधु केशलोंच के दिन उपवास रहते हैं। इस दिन अन्न व जल का ग्रहण नहीं करते हैं। कई साधु केशलोंच के दिन मौन भी रखते हैं।

उत्कृष्ट साधना शक्ति का परीक्षण
श्री महावीर भगवान कहते हैं कि हाथों से बालों
को उखाड़ना शरीर को कष्ट देना नहीं है। बल्कि
यह तो शरीर की उत्कृष्ट साधना शक्ति का परीक्षण
है। साधना शक्ति के परीक्षण में तकलीफ का
अनुभव होता ही नहीं है। इससे तो कर्मों की
निर्जरा होती है। केशलोंच तपस्या का अनिवार्य
हिस्सा है। जैन संत जिस दिन केशलोंच की
प्रक्रिया करते है उस दिन निराहार रहते है और
प्रायश्चित भी लेते हैं। चूंकि जैन संत न तो
अपने पास कैंची रखते हैं और न ही अपने
साथ ब्लेड। और नाई को देने के लिए पैसे भी
नहीं रखते हैं। सिर्फ कमंडल और पिच्छी के
अलावा जैन संतों के पास कुछ नहीं होता।
इसलिए मुनि व्रतों के पालन के लिए संत स्वयं
अपने हाथों से एक एक केश को निकालते है।
ताकि अहिंसा व्रत का पालन हो।
-मुनि पूज्य सागर महाराज

 

 

आप को यह कंटेंट कैसा लगा अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे।
+1
0
+1
0
+1
0

You cannot copy content of this page

× श्रीफल ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें