आलेख

मोबाइल से बच्चों का बड़ा नुकसान

श्रीफल न्यूज के लिए प्रकाश श्रीवास्तव की रिपोर्ट

जयपुर। प्रौद्योगिकी और धर्म विरोधी नहीं, बल्कि पूरक होते हैं। धर्म यही कहता है जो दिखता है वह प्रायः सत्य नहीं होता है। अतः जीवन में धर्म पर विश्वास करना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सके। धर्म और प्रौद्योगिकी के लिए एक नैतिक संहिता तैयार करने और इसे पारंपरिक शिल्प के साथ संश्लेषित करने की जरूरत आवश्यक है ताकि प्रकृति, धर्म को संरक्षित किया जा सके और मानव जाति के भाग्य के साथ खिलवाड़ करने से रोका जा सके।

आज के बच्‍चों को मोबाइल फोन का इस्‍तेमाल करना बहुत अच्छा लगता है। हालांकि, हम सभी जानते हैं कि बच्‍चों के लिए मोबाइल फोन का इस्‍तेमाल कितना खतरनाक होता है। अगर आप भी बच्‍चे के हाथ में स्‍मार्टफोन थमा देते हैं और आपका बच्‍चा फोन से दूर जाना बिल्‍कुल पसंद नहीं करता तो इस आदत के कारण आपके बच्‍चे को बहुत नुकसान हो सकता है। साधु का जीवन भी एक बड़ी तकनीक है कि वह लोगों को दुख से बाहर कैसे निकालें।

हम सब देख ही रहे हैं कि बच्चे मोबाइल फोन से न जानने वाली बातें सीख रहे हैं। इससे जुड़े अनेक मामले रोजाना अखबारों में छप रहे हैं। इसके पीछे मां-बाप की अनदेखी है। सूरत के समाजसेवी सवजी धोलकिया स्पष्ट कहते हैं कि यदि आज के लोग चाहते हैं कि 20 साल बाद उनके घर में पागल न पैदा हो तो अभी से मोबाइल के इस्तेमाल पर नियंत्रण करने की महती जरूरत है। बच्चे अपने पिता से आलस्य और मां से गालियां सीख रहे हैं। इसमें किसी की गलती निकालने की जरूरत नहीं है। आपके घर के माहौल पर सारा दारोमदार टिका हुआ है।

धोलकिया ने अपनी बात और साफ करते हुए कहा कि यह सब बहुत सोच-समझकर कह रहा हूं। लोग हमारी बात मानें यह जरूरी नहीं है। हम सभी परिवार के साथ रहतेे हैं, बच्चों के साथ खेलते हैं। आज हर आदमी डिप्रेशन में जी रहा है। मोबाइल फोन आदमी को पागल बना रहा है। धोलकिया ने यह भी कहा कि आज बच्चों की नहीं बल्कि अभिभावकों को बहुत कुछ सिखाने की जरूरत है। दुनिया बदल रही है, लोगों की आदतें और विचार बदल रहे हैं। समय के साथ हमें भी बदलने की जरूरत है। जो नहीं बदलेंगे वे बहुत पीछे रह जाएंगे। टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करें पर एक सीमा तक, अन्यथा इसके परिणाम बहुत ही ज्यादा बुरे होंगे।

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