कथा सागर

कहानी: दान की महिमा

एक बार एक भिखारी सुबह के समय अपने घर से बाहर निकला। वह एक त्यौंहार का दिन था। आज गांव में उसे बहुत भिक्षा मिलने की संभावना थी। वो अपनी झोली में थोड़े से चावल के दाने डालकर बाहर आया। चावल के दाने इसलिए डाल लिए थे कि झोली अगर भरी दिखायी पड़े तो देने वाले को आसानी होती है, उसे लगता है कि किसी और ने भी दिया है। सूरज निकलने के करीब है। रास्ता सोया है। अभी लोग जागने ही लगे हैं। मार्ग पर आते ही सामने से राजा का रथ आता हुआ नजर आता है, सोचता है आज राजा से अच्छी भीख मिल जायेगी। भिखारी ये सोच ही रहा होता है तभी राजा का रथ उसके पास आकर रुक जाता है और अचानक राजा उसके सामने एक याचक की भांति खड़ा होकर उससे भिक्षा देने की मांग करने लगता है। राजा कहता है कि आज देश पर बहुत बड़ा संकट आया हुआ है, ज्योतिषियों ने कहा है इस संकट से उबरने के लिए यदि मैं अपना सब कुछ त्याग कर एक याचक की भांति भिक्षा ग्रहण करके लाऊंगा तब ही इसका उपाय संभव है। तुम आज मुझे पहले आदमी मिले हो इसिलिए तुम से भिक्षा मांग रहा हुं यदि तुमने मना कर दिया तो देश का संकट टल नहीं पायेगा इसलिए तुम मुझे भिक्षा में कुछ भी दे दो। भिखारी तो सारा जीवन मांगता ही आया था कभी देने के लिए उसका हाथ उठा ही नहीं था। सोच में पड़ गया कि ये आज कैसा समय आ गया है कि एक भिखारी से भिक्षा मांगी जा रही है और मना भी नहीं कर सकता। बड़ी मुश्किल से एक चावल का दाना निकालकर राजा को दिया। राजा वही एक चावल का दाना ले खुश होकर आगे भिक्षा लेने चला गया। सबने उस राजा को बढ़चढ़ कर भिक्षा दी परन्तु भिखारी को चावल के एक दाने के जाने का गम भी सताने लगा। जैसे तैसे वह शाम को घर आया तब भिखारी की पत्नि ने भिखारी की झोली पलटी तो उसमें उसे भिक्षा के साथ ही अन्दर एक सोने के चावल का दाना नजर आया। भिखारी की पत्नि ने उसे जब सोने के दाने के बारे में बताया तो वह भिखारी छाती पीटकर रोने लगा। जब उसकी पत्नि ने उसे रोने का कारण पूछा तो उसने अपनी पत्नि को सारी बात बताई। उसकी पत्नि ने कहा कि तुम्हें पता नहीं कि जो दान हम देते हैं वह हमारे लिए स्वर्ण है और जो हम इकट्ठा कर लेते हैं वो सदा के लिए मिट्टी हो जाता है। तब से उस भिखारी ने भिक्षा मांगनी छोड़ दी और मेहनत करके अपना तथा अपने परिवार का भरण पोषण करने लगा। जिसने सदा दूसरों के आगे हाथ फैलाकर भीख मांगी थी अब खुले हाथ से दान पुण्य करने लगा। धीरे-धीरे उसके दिन बदलने लगे और जो लोग सदा उससे दूरी बनाया करते थे अब उसके समीप आने लगे। वो एक भिखारी की जगह एक दानी के नाम से जाना जाने लगा।

सीख

इस कथा का सार यह ही है कि जिस इन्सान की प्रवृति देने की होती है उसे कभी किसी चीज की कमी नहीं होती और जो हमेशा लेने की नीयत रखता है उसको कभी भी पूरा नहीं पड़ता।
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