अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज का एक मई को 9वां दीक्षा दिवस है। इस अवसर पर पढ़िए यह विशेष आलेख कि कैसे बालक चक्रेश निकला धर्म की राह पर और बन गया मुनि पूज्य सागर । श्रीफल जैन न्यूज संपादक रेखा संजय जैन की विषेश रिपोर्ट ।
इन्दौर । भीड़ से अलग दिखने की चाह में हमेशा कुछ नया करने की कोशिश करने वाले बालक चक्रेश का धर्मपुंज बन मुनि पूज्य सागर महाराज बनने का यह सफर प्रेरणादायी है। एक मई, 2015 को उन्होंने भीलूडा (राजस्थान), में मुनि दीक्षा ग्रहण की थी।
गृहस्थ जीवन
मुनि पूज्य सागर जी का जन्म मध्यप्रदेश में खरगोन जिले के पिपलगोन गांव में सोमचंदजी जैन और विमला देवी के घर 3 जुलाई 1980 को हुआ था। वह हमेशा ही दूसरों की मदद को तत्पर रहते थे। वर्ष 1998 में चक्रेश जैन घर छोड़ने का संकल्प लेकर निकले और आज हमारे सामने मुनि पूज्य सागर महाराज के नाम से सम्मुख हैं।
छोटी उम्र में समाज का उत्थान
बालक चक्रेश के रूप में उन्होंने छोटी सी उम्र में अपने मित्रों के साथ गांव के पंचायत भवन में मित्र मिलन वाचनालय की शुरुआत कर सभी को अध्ययन के लिए उपयुक्त स्थान दिया। मीडिया में रुचि और कुछ करने की चाह में स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता की और एन.एस.यू. आई के नगर अध्यक्ष पद पर भी कार्य किया। गरीब लोगों के प्रति हमेशा से ही दया और करुणा का भाव उनके मन में रहता था। घर से स्कूल की फीस भरने को पैसे मिलते तो वह अपनी फीस न भरकर किसी और गरीब दोस्त की भर देते थे।
ऐसे जागे मुनि भाव
यह सब दादा, दादी, माता-पिता के संस्कार ही थी कि वह दिगंबरत्व की राह पर बढ़ गए। उनकी बातें सुनकर ही तथा पूर्वजन्म के संस्कार के साथ जब भाग्य का उदय आया तो एक नया जन्म हुआ उनके मुनि भाव का, जो मोक्ष मार्ग के लिए अत्यंत आवश्यक है।
आर्यिका वर्धितमति माताजी से मिली प्रेरणा
समाज सेवा भी चल ही रही थी फिर भी बालक चक्रेश के मन की बेचैनी जस की तस थी। यह बैचेनी संसार से विरक्ति की थी। उस जीवात्मा की थी, जो संसार में रमने नहीं, संसार से तरने आई थी। इस अंतस की बेचैनी को आर्यिका वर्धितमति माताजी ने समझा और बालक उनके दर्शन मात्र से अपनी नियति की उचित दिशा में बढ़ चला। उसने यकायक ही आचार्य श्री 108 वर्धमान सागर जी महाराज से आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर लिया। ब्रह्मचर्य अवस्था की यात्रा अद्भुत थी।
मन पर नियंत्रण और अध्ययन से ज्ञानार्जन का सफर शुरू हो चुका था। तभी गुरु आज्ञा से उन्हें विषयों को गहराई से जानने के लिए बाहुबली की शरणागत हो जगद्गुरु कर्मयोगी स्वस्ति श्री चारुकीर्ति भट्टारक स्वामी जी के सान्निध्य में रहने का सुअवसर प्राप्त हुआ। जिज्ञासु प्रवृत्ति, कुछ नया करने की जिजीविषा और लेखन कार्य में रुचि ने शीघ्र ही स्वामी जी का स्नेहपात्री बना दिया।
गृहस्थ अवस्था में राजनीति, सामाजिक पद
सदस्य : जिला पत्रकार संघ खरगोन(मध्यप्रदेश)
नगर अध्यक्ष : पिपलगोन एन.एस.यू.आई
प्रचार मंत्री : नगर पत्रकार संघ, पिपलगोन
उपाध्यक्ष : वर्धमान बाल मंडल, पिपलगोला
प्रचार मंत्री : पोरवाडा नव युवक मंडल
महामंत्री: तहसील पत्रकार सलाहकार मंडल, कसरावद
सदस्य- युवा जनचेतना मंच जिला खरगोन (उपमुख्यमंत्री सुभाष यादव द्वारा संचालित)
संयम मार्ग के ये रहे कम
बालक चक्रेश ने 1 फरवरी 1998 बिजौलिया (राजस्थान) आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के संघ में प्रवेश किया और 9 फरवरी 1998 बिजौलिया (राजस्थान) 3 साल का ब्रह्मचर्य व्रत आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज से आर्यिका वर्धितमति माता जी की प्रेरणा से धारण किया। इसके बाद उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत 22 अप्रेल 1999, अजमेर (राजस्थान) आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज से आर्यिका वर्धितमति माता जी की प्रेरणा से धारण किया। क्षुल्लक दीक्षा 23 अप्रेल 2008 डेचा (राजस्थान) , एक मई 2015 में भिलुड (राजस्थान) में मुनि दीक्षा ग्रहण की । आप के दीक्षा गुरु आचार्य श्री अभिनन्दन सागर जी महाराज जी महाराज और कर्मयोगी स्वस्तिश्री चारुकीर्ति भट्टारक स्वामी जी श्रवणबेलगोला की प्रेरणा से ग्रहण की।
शुरू किए कई अभियान
क्षुल्लक अवस्था की यात्रा में यूथ रूबरू, ज्ञानामृतं अभियान, अतुल्य सागर धर्म क्षेत्र, श्रीफल पुरस्कार आदि सामाजिक हितकार्यों का प्रतिपादन हुआ। धार्मिक श्रीफल परिवार की नींव रखी गई। विधि-विधान और धार्मिक क्रियाओं और अनुष्ठानों के आगमपूर्वक आयोजन हुए। इस दौरान डूंगरपुर, ऋषभदेव, श्रवणबेलगोला, हिम्मतनगर, ईडर, योगेन्द्रगिरि आदि स्थानों पर चातुर्मास हुए।
ऐसे रखी श्रीफल पत्रिका की नींव
उनकी संयम मार्ग की यात्रा में गहनता से ज्ञान उपार्जन के लिए वे अपने दीक्षा गुरु से आज्ञा ले ज्ञान के विशाल सागर आचार्य श्री 108 पुष्पदंतसागर जी महाराज के पास आ गए और उन्हीं के साथ अपनी साधना को उत्तरोत्तर गति प्रदान करते रहे, तभी श्रीफल पत्रिका के प्रकाशन की योजना बनी, जिसकी नवीनता और आकर्षक कलेवर के साथ ज्ञानपरख सामग्री ने सभी का मन मोहा और जैन पत्रकारिता में एक नवीन सोच को अंकुरित किया। इसकी सदा सराहना हुई।
पुस्तक लेखन
मुनि पूज्य सागर समर्पण, सरस्वती आराधना, प्रणाम से प्रारंभ, एक विचार, चारित्र चक्रवर्ती सार, दशानन दस, दशलक्षण जैसी किताबें लिख चुके हैं।
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