आलेख

तीर्थंकर भगवान महावीर जन्मकल्याणक पर विशेष निवेदन आलेख : 101 वर्ष से जारी है अहिंसा यज्ञ, हमारी धरोहर-हमारी पहचान


मारोठ में बकरशाला में आज भी बलि के बकरे सुरक्षित रखे जाते है क्यों ? 101 वर्ष पहले मारोठ में एक सेठ हुए श्री बीजराज पाण्ड्या जो एक उत्कृष्ट श्रावक के रुप में अपना जैन दर्शन अनुरुप व्यवसाय करते थे। हमारा आपका भी फर्ज बनता है कि हम मारोठ की जैन समाज को तन-मन का बल मजबूत कर धनबल प्रदान करें। पढ़िए राजेन्द्र जैन महावीर का यह विशेष आलेख….


सनावद। जियो और जीने दो, अहिंसा परमोधर्मः प्राणी मात्र के प्रति दया, करुणा, सद्भावना, समानुभूति, सेवा के प्रति समर्पित हमारा जैन समाज अदभुत है, गौरवशाली है, प्रेरणादायी है, भगवान महावीर जिन्हें हम वर्तमान शासननायक भी कहते हैं, उनके निर्वाण का 2550वां वर्ष हम मना रहे हैं, अनेक आयोजन होंगे । इन आयोजनों के बीच मैं ऐसे कार्य की चर्चा करना चाहता हूं जो विगत 101 वर्ष से निरंतर जारी है जो हमारी पहचान है, हमारा गौरव है, हमारा सरताज है। ग्राम है – मारोठ, जिला डीडवाना कुचामन, राज्य है राजस्थान। जयपुर से मात्र 90 किमी की दूरी। आइये जानते हैं हमारे पूर्वजों के भाव और उनकी हृदयांगम भावना जो हमारे लिए गौरव है।

पशुशाला, गौशाला तो बहुत सुनी होगी, पर मारोठ में है एक ‘बकरशाला’

हमारा गौरव है कि प्राणी मात्र के प्रति संवेदनशील जैन समाज सर्वाधिक गौशालाएं संचालित करता है । लेकिन मैंने ‘बकरशाला’ पहली बार सुनी। जी हां, मारोठ में बकरशाला में आज भी बलि के बकरे सुरक्षित रखे जाते है क्यों ? 101 वर्ष पहले मारोठ में एक सेठ हुए श्री बीजराज पाण्ड्या जो एक उत्कृष्ट श्रावक के रुप में अपना जैन दर्शन अनुरुप व्यवसाय करते थे। ग्राम के भैरव मंदिर में जो अभी भी है, वहां हमारे जैनेत्तर भाई मनौती मांगते थे और मनौती पूरी होने पर भैरव मंदिर में बकरे की बलि देते थे, समाजजनों व पाण्ड्याजी की पीड़ा किसे कहें। बलि देने वाले समाजजनों से चर्चा हुई कि अपनी मनौती के लिए बकरे के प्राण लेना उचित नहीं है तो उन्होंने अपनी प्राचीन परम्परा पूर्वजों की मान्यता की बात कही। मारोठ जैन समाज के सामने श्रावक श्रेष्ठी बीजराज जी का दर्द चिंताजनक था।

बात बन गई-बकरे को हम नहीं काटेंगे, आप रख लेना, पालना

जैन समाज की भावना फलीभूत हुई और बात बन गई, अहिंसा करुणा की यह फलश्रुति हुई कि आप बकरा मत काटना हमें दे देना, हम उसे जीवन भर पालेंगे और बन गई बकरशाला । सन् 1920-21 में जीवदया पालक समिति ट्रस्ट बना जो आज भी जारी है । विगत 101 वर्ष से जैनेत्तर समाज अपनी परम्परा अनुरुप बकरे को भैरव मंदिर ले जाते लेकिन उसकी बलि नहीं होती। वह सौभाग्यशाली बकरा जिसकी नियति में ‘कटना’ था, अहिंसक महावीर के अनुयायियों के अहिंसा भाव के कारण मारोठ में बकरे कटते नहीं हैं, पलते हैं शान से। इस क्रम में अभी तक हजारों बकरों की जान बची है व आज भी बकरशाला में बकरे अपना जीवन जी रहे है जिसे हम देख सकते हैं।

बिल्ली, कबूतर न पकड़ पाये इसलिए बनवा दिया पक्षी निवास

अनाज व्यवसायी समाज व बींजराजजी पांडया के सामने अनाज चुगने आने वाले पक्षी कबूतर आदि को बिल्ली पकड़ का लेती। अहिंसक व्यापारियों को लगता कि हमारी दुकान के गिरे हुए अनाज के कारण कबूतर की जान जा रही है। करुणा से बनी बकरशाला के साथ ही पक्षी निवास भी बनाया गया जो दर्शनीय है । पक्षी निवास दो मंजिला पत्थर का षटकोणीय बना है, जिसमें घुमावदार सीढ़ियां हैं। पक्षी निवास की छत पर पक्षियों को चुगने हेतु दाना डाला जाता है, जिसे पक्षी चुग लेते हैं, बिल्ली नहीं जा पाती है । ये दोनों प्रकल्प मारोठ में 101 वर्ष से चल रहे जो हमारी आन-बान-शान हैं।

अहिंसा कल्याणक थक न जाए – बाहुबली पाण्ड्या

जीवन के आठवें दशक में चल रहे इन्दौर के वरिष्ठ समाजसेवी श्री बाहुबली पाण्डया ने जब मुझे यह सब जानकारी दी तो रोंगटे खड़े हो गए कि हमारे पूर्वजों की महिमा निराली है, वे श्री बींजराज पाण्डया के पड़पोते हैं। श्री बाहुबलीजी जिनके पूर्वज 75 वर्ष पहले मारोठ से इन्दौर आ गए लेकिन मातृभूमि के प्रति स्नेह व अपने पूर्वजों की परम्परा को चलाने का उत्साह उनके चेहरे को प्रसन्नता से भर देता है लेकिन उनकी चिंता बहुत जायज है कि कहीं यह अहिंसा कल्याणक थक न जाए । हमारे लिए चिंता की बात यह है कि –

01. 101 वर्ष पहले मारोठ में जैन समाज के घर थे 600, आज हैं मात्र 35-40 ।

02. जीवदया पालक समिति बकरशाला, पक्षी निवास पर प्रतिवर्ष दाना, पानी, वेतन आदि पर 20 से 25 लाख खर्च

करती है ।

03. इसके लिए जगह-जगह जाकर धन एकत्रित नहीं किया जाता है फिर भी जैसे-तैसे धन की व्यवस्था हो जाती

है।

04. मारोठ के निवासी अपने पूर्वजों की परम्परा हेतु समर्पित है ।

भगवान महावीर की जय-जयकार करने वाले हम लोग भी अहिंसा कल्याणक पर संकल्प कर सकते हैं।

– अपने माता-पिता कि पुण्य स्मृति में ।

– प्रियजनों के जन्मदिवस, विवाह वर्षगांठ आदि प्रसन्नता के अवसर पर ।

– प्रतिवर्ष जीवदया हेतु दान का संकल्प हम लें और जो भी बने 101 रुपये से लेकर 1000 रुपये तक

दान करें और मारोठ की जीवदया पालक समिति को अपना योगदान अवश्य भेजें जिससे यह

गौरवपूर्ण कार्य अनेक पीढियों तक जारी रह सके ।

मेनका गांधी कर चुकी है प्रशंसा

सन् 1997 में भारत सरकार में तत्कालीन कल्याण राज्यमंत्री रही श्रीमती मेनका गांधी ने पीपल्स फाॅर एनिमल के लेटरपेड पर बाहुबलीजी पंडया इन्दौर को पत्र भेजकर उक्त कार्य की प्रशंसा की है। हमारा आपका भी फर्ज बनता है कि हम मारोठ की जैन समाज को तन-मन का बल मजबूत कर धनबल प्रदान करें ।

उल्लेखनीय है कि मारोठ में 650 वर्ष प्राचीन दिगम्बर जैन मंदिर अत्यंत दर्शनीय है साथ ही जैन मंदिरों में जो कांच का कार्य किया जाता है वह कार्य भी मारोठ के कुमावत परिवार द्वारा किया जाता है जो पूरे देश में फैला है । इन्दौर के प्रसिद्ध कांच मंदिर में भी बेल्जियम के कलाकारों के साथ मारोठ के कारीगरों ने काम किया है । मारोठ ग्राम के लोग इन्दौर में आकर बसे तो इन्दौर में जिसे आज मारोठिया बाजार के नाम से जाना जाता है वह मारोठ के लोगों के कारण ही है ।

मारोठ समिति को अपना सहयोग भेजने के लिए –

जीवदया पालक समिति ट्रस्ट, भारतीय स्टेट बैंक, मारोठ (MAROTH) 31297 जिला डीडवाना कुचामन (राज)

बैंक खाता नंबर – 51071560040 IFSC : SBIN0031297

आपके द्वारा प्रेषित आर्थिक सहयोग हमारी परम्परा, गौरव को बढ़ाने में सहायक होगा । हमें विश्वास है कि अहिंसा कल्याणक अब रुकेगा नहीं ।

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें – श्री बाहुबलीजी पांडया – 8989408314

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