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गया में संत समागम में लगा श्रावकों का मेला: आचार्य भगवन सम्मतिसागर महाराज का 12वां समाधि दिवस कार्यक्रम

अजमेरा. राजकुमार- परम पूज्य आगम प्रवक्ता,झारखण्ड राजकीय अतिथि श्रमण श्री 108 विशल्यसागर जी गुरुदेव के मंगल आशीर्वाद और सन्निध्य में सम्पन्न हुआ । सभी इन्द्र -इन्द्राणियों ने पूज्य आचार्य भगवान का गुणों का अनुवादन विधान के द्वारा किया इसी बीच पूज्य गुरुदेव विशल्यसागर जी गुरुदेव की मंगल वाणी सुनने का सुअवसर भी प्राप्त हुआ ।

पूज्य गुरुदेव ने अपने उद्बोधन में कहा कि महान आचार्यो की भक्ति से तीर्थंकर प्रकृति का बंध होता है और इनकी सातिशय भक्ति ही निधत्ति निकाचित कर्म कट जाते है ।

अद्भत संत थे आचार्य सन्मति सागर महाराज
पूज्य गुरुदेव ने बताया कि आचार्य सन्मतिसागर जी महाराज के जीवन एक महान व्यक्तत्व का धनी था उन्होंने अपने जीवन काल में महान व्रतों को अंगीकार किया ।

16 वर्ष की अल्पायु में ब्रह्मचार्य व्रत लेते ही नमक का जीवन भर के लिए त्याग कर दिया जैसे-जैसे वो अपने जीवन में आगे बढ़ते गए उन्होंने कठिन -कठिन व्रतों को जीवन अंगीकार किया ।

दीक्षा ग्रहण करते ही षटरस (छह रसों) का जीवन भर के लिए त्याग कर दिया । अन्त समय में छाछ ,पानी को छोड़कर सब वस्तु का त्याग कर दिया और समाधि काल के समय छह महिनें तक जल का भी त्याग कर दिया ।

ऐसे महान आचार्य का जीवन की गौरव गाथा गाने के शब्दकोश में शब्द भी कम पड़ जाएगे ।

ऐसे आचार्य जिनके जीवन काल में अनेकों चमत्कार देखने अपने आँखों से देखने मिलते थे कहते है कि जब सन्मति सागर महाराज ध्यान करते थे उनके पास सर्प आकर खेलते थे आचार्य श्री के जीवन की अनेकों घटनाऐं हैं ।

एक ऐसा महान साधक,संत जिसकी समाधि दिवस हम सब मना रहे है आज वो हमारे बीच नहीं लेकिन उनकी यादें आज भी हमारे ह्दय में स्थित है । सभी कार्यक्रम संघस्थ अलका दीदी,भारती दीदी के निर्देशन में हुआ ।

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