आलेख

अतिशयकारी टीले वाले बाबा: दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी

प्रस्तुति-अदिति सेठी, जयपुर

अटूट आस्था और विश्वास का अद्भुत केंद्र


जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के प्रति देश-दुनिया में लोगों की अपार श्रद्धा है और श्रद्धालुओं की यही अटूट श्रद्धा और विश्वास है राजस्थान के करौली जिले के हिंडौन उपखण्ड में गंभीर नदी के पश्चिमी तट पर नौरंगाबाद चांदनगांव में स्थित दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी के प्रति। यह केवल जैन समुदाय ही नहीं, बल्कि 36 कौम के लोगों की आस्था केंद्र है। इसका कारण है भगवान महावीर की अतिशयकारी प्रतिमा, जिसके दर्शन मात्र से लोगों को दुःख, दर्द, पीड़ाएं, चिंताएं और रोग दूर हो जाते हैं। इस चित्तहारी और मंत्रमुग्ध कर देने वाली प्रतिमा के दर्शन हेतु देश-दुनिया से लाखों श्रद्धालु खिंचे चले आते हैं।
भगवान महावीर की इस अतिशयकारी प्रतिमा के संबंध में बताया जाता है कि लगभग 450 वर्ष पूर्व नौरंगाबाद चांदनगांव में एक चर्मकार की गाय का दूध प्रतिदिन गंभीर नदी तट के पास एक टीले पर स्वतः ही झर जाया करता था। एक रात चर्मकार को स्वप्न आया कि जिस टीले पर गाय रोज चरने जाती है, उस स्थान पर एक अतिशयकारी प्रतिमा है। गाय अपना दूध वहीं अर्पित करती है। यह स्वपन देखने पर चर्मकार को उस टीले को खोदने की इच्छा हुई। टीले को खोदने पर वहां भगवान महावीर की चमत्कारी प्रतिमा निकली।
श्री महावीरजी तीर्थ क्षेत्र 450 वर्ष के अपने स्वर्णिम इतिहास को समेटे जैन धर्म का प्रतिनिधित्व कर रहा है। श्रद्धालुओं की आस्था भी समय के साथ स्वर्ण की आभा की तरह बढ़ती जा रही है। अतिशयकारी प्रतिमा का अभिषेक इस सदी का महामहोत्सव बन गया है। यह समय की वो विरासत है, जिसमें श्रद्धा और आस्था की सम्पदा समाहित है। जैन धर्म के गौरव क्षेत्र में अनेकानेक योजनाओं और प्रयासों से आज सर्वांगीण समाज लाभान्वित है। यह महावीर के सिद्धान्तों की विजय है।


गौरव पताका का प्रतीक है मान स्तंभ
श्री महावीरजी में मुख्य मन्दिरजी के सामने संगमरमर के प्लेटफॉर्म पर सन् 1952 में निर्मित 52 फुट उत्तुंग कलात्मक मानस्तम्भ गौरव पताका का प्रतीक है। यह सबको अपनी ओर आकर्षिक करता है। इसके शिखर पर चारों दिशाओं में श्वेत पाषाण की भगवान महावीर की 4 प्रतिमाएं विराजमान हैं। इन प्रतिमाओं का अभिषेक वार्षिक मेले के अवसर पर चैत्र शुक्ल चतुर्दशी को हर तीसरे वर्ष होता है। मान स्तंभ पर विराजमान प्रतिमाओं के रात्रि में भी दर्शन होते हैं।


ध्यान केंद्र में छिपा जीवन विज्ञान
मुख्य मंदिर जी में ही भगवान महावीर की प्रतिमा जहां विराजमान है, उसके नीचे की मंजिल में ही लाल पाषाण से निर्मित प्राचीन कलात्मक मंदिर विद्यमान है। इसे ध्यान केंद्र के रूप में विकसित किया गया है। ध्यान केंद्र में भगवान महावीर की प्रतिमा का एक विशाल चित्र स्थापित है। भक्तजन भगवान महावीर के चित्र के समक्ष बैठ कर एकाग्रता से ध्यान कर सकें, इसी भावना के साथ ध्यान केंद्र को तैयार किया गया है। ध्यान केंद्र की गरिमा के अनुरूप विद्युत प्रकाश और तापमान की व्यवस्था की गई है। ध्यान केंद्र में विभिन्न रत्नों की मनोज्ञ 385 प्रतिमाएं विराजित हैं।


अतिशयकारी प्रतिमा का उद्भव स्थल
श्री महावीरजी कटले के दक्षिण से बाहर की ओर जाने पर एक सुंदर उद्यान है। उद्यान के मध्य में भगवान महावीर के उद्भव स्थल पर एक कलात्मक छतरी निर्मित है। इसमें भगवान के चरण चिन्ह प्रतिष्ठित हैं। श्रद्धालु यहां दुग्ध अभिषेक करके स्वयं को धन्य मानते हैं। चरण छतरी के पार्श्व भाग में एक सुंदर प्लेटफॉर्म है, जहां आकर श्रद्धालु अपने बच्चों का मुंडन कराते हैं। उद्यान में 29 फीट ऊंचा संगमरमर का भगवान महावीर का स्तूप भी है। इसके फलकों पर भगवान महावीर के उपदेश अंकित हैं और शीर्ष भाग पर धर्म चक्र अंकित है।


बालमन और जीवदया का भाव
श्री महावीरजी क्षेत्र में बच्चों के मनोरंजन के लिये उद्यान परिसर में बाल वाटिका बनाई गई है। जहां झूले आदि की व्यवस्था है। एक ओर आकर्षण का केंद्र है पक्षी चुग्गा स्थल। यह स्थान महावीर के संदेश का प्रत्यक्ष उदाहरण है। यहां हजारों की तादाद में पक्षी आते हैं और दाना चुगते हैं। उनका समूह एक ऐसा दृश्य प्रकट करता है कि श्रद्धालुओं का मन प्रसन्न हो जाता है।

 


सुविधायुक्त आवास, सुरूचि भोज
श्री महावीरजी क्षेत्र में आवास हेतु समुचित प्रबन्ध है। यही वजह है कि यात्रियों को यहां आने के बाद घर जैसा सुविधापूर्ण अहसास होता है। अन्नपूर्णा भोजनालय और सुरूचि अल्पाहार गृह में 400 से अधिक व्यक्ति एक साथ बैठकर भोजन और अल्पाहार कर सकते हैं। क्षेत्र में आवास और भोजन की समुचित और बिना अवरोध दी जाने वाली सुविधाएं यात्रियों को अत्यंत सुकून प्रदान करती है।

सद्भाव और श्रद्धा का अनुपम संगम
श्री महावीरजी का वार्षिक मेला एक ख्यातिनाम मेले के रूप में जाना जाता है। यह उत्सव महावीर जयन्ती के अवसर पर चैत्र शुक्ल दशमी से बैशाख कृष्ण द्वितीया तक होता है। चैत्र शुक्ल दशमी को मेले की स्थापना होती है। प्रभात फेरी के बाद ध्वजारोहण और फिर जलयात्रा आयोजित होती है। प्रदर्शनी, सामाजिक कार्य, लोक कलाकारों की प्रस्तुतियां और राज्य सरकार के सहयोग से उत्सव को भव्य स्तर पर मनाया जाता है, जिसमें सभी स्थानीय समुदाय उल्लासपूर्वक भाग लेते हैं।

भव्य रथ यात्रा और उत्साह की बरसात
श्री महावीरजी के वार्षिक मेले पर आयोजित विशाल रथयात्रा देश-विदेश में प्रसिद्ध है। भगवान महावीर को भव्य रथ में विराजित कर भक्तों का झुंड जब नाचते-गाते चलता है, तब आपसी सद्भाव और अहिंसा धर्म के प्रति श्रद्धा रूपी मोतियों की बरसात होती है। इस अवसर पर चयनित कर्मचारियों का सम्मान होता है। मुनि महाराज और आर्यिका माता जी द्वारा धर्म सभा भी होती है।

चिकित्सा सेवा से जीवन सम्मान
प्रबन्धकारिणी कमेटी द्वारा श्री महावीर दिगम्बर जैन आयुर्वेदिक औषधालय, श्री वर्धमान रसायन शाला, श्रीमती चन्द्रावली सिद्धोमल जैन अस्पताल एवं प्रसूति गृह, श्री महावीर योग प्राकृतिक चिकित्सा एवं शोध संस्थान जैसी संस्थाएं चिकित्सा सेवाओं से आगन्तुकों को लाभ प्रदान कर रही है।

शिक्षा से प्रभु आराधना
शिक्षा के क्षेत्र में भी श्री महावीरजी क्षेत्र में जैन विद्या संस्थान, पाण्डुलिपी संग्रहालय, पुस्तकालय एवं वाचनालय, शोध पत्रिका: जैन विद्या का प्रकाशन कार्य, सर्वाेदय पुस्तकमाला, अपभ्रंश साहित्य अकादमी आदि विभिन्न गतिविधियों का संचालन होता है। क्षेत्र में स्कूली शिक्षा के विकास के लिए पूर्णतः निशुल्क विद्यालय का संचालन भी होता है। सभी संस्थाएं एक दूरगामी लक्ष्य के साथ महावीर के बताए मार्ग को प्रसारित और प्रचारित कर रही हैं।

भक्ति, श्रद्धा और सहयोग से संचालित
भगवान महावीर की प्रतिमा के अतिशय से ही इस विख्यात क्षेत्र का वर्तमान स्वरूप सामने आया है। जन मानस की भगवान महावीर के प्रति श्रद्धाभक्ति और कमेटी के प्रति दानदाताओं के विश्वास एवं समाज के कर्मठ कार्यकर्त्ताओं की लगन व निष्ठा से यह क्षेत्र देश के सर्वाेत्तम तीर्थों में गिना जाता है। यहां के कुशल प्रबंधन, विकास कार्य व अन्य व्यवस्थाएं सभी के लिए प्रेरणादायी साबित हो रही हैं। सभी के सहयोग और महावीर भगवान के प्रति प्रगाढ़ श्रद्धा का प्रतीक क्षेत्र बन गया है, श्री महावीरजी।

अद्भुत, अतिशयकारी और अलौकिक
श्री महावीरजी के विशाल जिनालय के गगन चुम्बी तीन लाल रंग के पत्थर के शिखर एवं स्वर्ण कलशों के साथ फहराते जैन धर्म के ध्वज सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान व सम्यक चारित्र का संदेश देते प्रतीत होते हैं। मंदिर के पार्श्व में सुंदर कलात्मक वेदी में मूलनायक के रूप में भूगर्भ से प्राप्त भगवान महावीर की परम दिगम्बर मूर्ति विराजित है तथा इसके दाँयी ओर तीर्थंकर पुष्पदंत स्वामी एवं बाँयीं ओर तीर्थंकर आदिनाथ स्वामी की प्रतिमाएं विराजित हैं। इनके पीछे बहुत सुंदर स्वर्ण भामंडल और प्रतिमाओं पर स्वर्ण छत्र लगे हैं। मंदिर जी में बहुत ही कलात्मक 10 वेदियां और 3 आले हैं।

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