अंतर्मुखी की दिल की बात

अंतर्मुखी की दिल की बात: अक्षय तृतीया पर अंतर्मुखी श्री पूज्य सागर महाराज का अप्रतिम चिंतन….

26 अप्रैल 2020,उदयपुर अक्षय तृतीया जैन धर्म का बहुत बड़ा पर्व है क्योंकि आज ही के दिन हमारे जैन धर्म में दान तीर्थ का प्रवर्तन हुआ था। इसी दिन राजा श्रेयांस ने पहली बार भगवान आदिनाथ को इक्षुरस का आहार दिया था। इससे पहले आदिनाथ भगवान छह महीने तक घूमते रहे, लेकिन किसी को भी उन्हें आहार देने की विधि पता नहीं थी। राजा श्रेयांस को जाति स्मरण हुआ और उन्होंने भगवान को आहार दिया। यह हम सब जानते हैं और प्रतिवर्ष इस परंपरा को निभाते भी हैं, भगवान का इक्षुरस से अभिषेक करते हैं। साधुओं को आहार कराते हैं लेकिन इस बार मैं अपना नया चिंतन इस पावन मौके पर आप तक पहुंचाना चाहता हूं। अगर आप लोगों को अच्छा लगे तो इस पर चर्चा अवश्य करना। इन दिनों हमेशा एक आक्षेप साधुओं पर लगता है और कुछ हद तक वह सत्य भी है तो कई बार परिस्थितिवश ऐसा होता है। यह आक्षेप है कि फलां साधु फोन रखता है, साधु गाड़ी रखता है, साधु नौकर-चाकर रखता है। इसलिए यह साधु नमन करने योग्य नहीं है। शास्त्रोक्त तो यह सही है कि किसी भी साधु को फोन नहीं रखना चाहिए, गाड़ी भी नहीं रखनी चाहिए, नौकर-चाकर भी नहीं रखने चाहिए लेकिन पूरे हिंदुस्तान में एक भी संघ ऐसा नहीं है, जिनमें गाड़ियां न हों, संघ में नौकर काम नहीं कर रहे हों। हां, कुछ जगह नौकर की व्यवस्थाएं साधुओं के मार्गदर्शन में चल रही हैं तो कुछ उनके धनाढ्य भक्तों और उनकी संस्थाओं के निर्देशन में। लेकिन कई जगह कुछ साधु स्वयं फोन का उपयोग करके अपने भक्तों को फोन करके साधन जुटाने का पुरुषार्थ करते हैं क्योंकि विहार तो फिर भी साधु अकेला कर जाएगा, पर आहार श्रावकों के अधीन है। साधु दीक्षा के बाद अपने ज्ञान, चारित्र को उन्नत कर उसे नई ऊंचाइयों पर पहुंचा पाता है, अपनी साधना और ज्ञान में आगे बढ़ पाता है तो इसमें समाज और संस्थाओं का बहुत बड़ा योगदान होता है। अब यह भी कड़वा सत्य है कि सारे संघों में नौकर हैं, साधुओं के कमंडल में पानी भरने से लेकर उनका सामान गाड़ी में चढ़ाने तक काम नौकर ही करते हैं तो इसकी वजह है और यह वजह है समाज का अपना कर्तव्य छोड़ना। समाज धन तो दे देता है लेकिन समय नहीं देता। बहुत कम लोगों को छोड़कर समाज के 80 प्रतिशत लोग केवल धन राशि दे देते हैं और उसी से साधुओं के आहार-विहार की व्यवस्था होती है। जो बहुत नामी और बड़े संघ हैं, वहां समाज के धनाढ्य लोग और संस्थाएं, सहयोग करके उनका काम चला देते हैं लेकिन कुछ साधु ऐसे ही हैं, जो मोबाइल रख रहे हैं, गाड़ी उनके पास है, तो कई संस्थाएं , समाज के कुछ व्यक्ति इसलिए उनको नमस्कार नहीं करते हैं, उनको अपने गांव में नहीं बुलाते हैं। कहते हैं कि साधु के पास मोबाइल है और इसके साथ नौकर हैं तो मुझे उन सब समाज वालों से, उन संस्थाओं से एक बात पूछनी है। मैं इस सत्य को नहीं छिपाउंगा कि मैं भी मोबाइल रखता हूं, मैं पास भी गाड़ी है। मैं समाज वालों से, उन संस्थाओं से पूछना चाहता हूं कि क्या कभी आपने इस विषय पर चिंतन किया है कि जो साधु मोबाइल रखते हैं, गाड़ियां रखते हैं, वो ऐसा क्यों कर रहे हैं। जिन्होंने अपना घर-बार छोड़ दिया है, जिन्होंने अपना सब कुछ छोड़ दिया है, वो इनका प्रयोग क्यों कर रहे हैं। क्या आपने कभी कोशिश की है कि उनसे जाकर पूछें कि क्या उनकी कोई मजबूरी है, जो वे ऐसा कर रहे हैं। आप जानेंगे कि वे मजबूरी में ऐसा कर रहे हैं। ऐसे में मैं आज आपको एक उपाय सुझाना चाहता हूं। एक-एक संस्था, एक-एक गांव, दस-दस गांव, सौ-सौ गांवों को मिलकर एक साधु को गोद लेना होगा। उन्हें संकल्प लेना होगा कि इनके आहार-विहार की व्यवस्था हम जीवन भर करेंगे, इन्हें जहां जाना होगा, जिन तीर्थों की वंदना करनी होगी, जहां इन्हें चातुर्मास करना होगा, वहां तक पहुंचाने की जिम्मेदारी हमारी होगी। उनके वहां आहार की व्यवस्था भी हम करेंगे तो मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि एक भी साधु के पास मोबाइल नहीं रहेगा, एक भी साधु के पास गाड़ी नहीं रहेगी। आज आप सभी को इस पर चिंतन करने जरूरत है क्योंकि आज का दिन आहार से जुड़ा हुआ है। हम मात्र आज आहार दान दे कर, विधान-अभिषेक करके घर में खुशी से बैठ जाते हैं लेकिन हमारा केवल ऐसा करके अपने कर्तव्य की इतिश्री करना कहीं न कहीं हमारे समाज के लिए भी घातक है क्योंकि खुद समाज अपने दिगंबर साधुओं की निंदा करता है, आलोचना करता है। करोड़पति हैं, गांव में साधु आ जाएं तो दर्शन तक नहीं करते हैं और आलोचना करते हैं कि इन महाराज के पास तो मोबाइल भी है, इन महाराज के पास तो गाड़ी है। मैं स्वीकर करता हूं कि कई साधुओं के पास गाड़ी और मोबाइल है, मेरे पास भी है लेकिन न मैं कमाने गया हूं और न मैंने चोरी की। किसी न किसी भक्त ने ही लाकर दी होगी, इसलिए दी होगी क्योंकि आहार-विहार में तकलीफें आती हैं। साधु अगर शिथिल पड़ा है तो उसके पीछे समाज जिम्मेदार है, इसमें कोई शंका नहीं है। सारे साधु शिथिल हो गए हैं, ऐसा नहीं है। कुछ साधु शिथिल भी हुए हैं तो समाज जिम्मेदार है। समाज अगर आज सूची बना ले कि सौ गांव एक साधु के आहार-विहार की व्यवस्था करेंगे, वे साधु की जिम्मेदारी उठा लेंगे तभी वह समाज और संस्थाएं साधु को कहने का अधिकारी हैं आप यह सब चीज छोड़ो और नहीं कह सकते हो आप जैन कहलाने के अधिकारी नहीं हो। हम करोड़ों रुपया गरीबों में बांट देते हैं। कहते हैं कि हमने करोड़ों रुपए गरीबों में बांट दिया है। भूखों को खाना खिला दिया है। मैं कहता हूं कि भूखों को खाना खिलाओ, मना नहीं है पर एक साधु को तो गोद ले लो। आप सभी पंथवाद और संतवाद, दोनों छोड़ दें, सिर्फ जिसके हाथ में पिच्छी और कमंडल है, उसकी चर्या में विघ्न न पड़े, उस साधु को गोद ले लें। और क्या चाहिए एक साधु को। उसे न तो कपड़ा चाहिए और न ही कोई दूसरा भौतिक संसाधन। बस आहार-विहार का साधन हो जाए, उसके बाद तो समाज जैसा कहेगा, वैसा वो करेगा लेकिन अगर आप यह नहीं कर सकते हो तो अक्षय तृतीया पर्व मनाने की आपकी सार्थकता भी नहीं है। इसलिए सार्थकता नहीं है कि एक दिन से आहार दान का पुण्य नहीं होगा। जीवन भर उनके आहार-विहार की व्यवस्था करो। क्योंकि अगर साधु बना है तो समाज के पीछे बना है। वो अपने चारित्र का पालन तब तक नहीं कर पाएगा, जब तक उसका आहार-विहार अच्छा नहीं होगा। तो आज आप एक संकल्प लें और मैं भी संकल्प लेता हूं कि अगर मैं फोन रखता हूं, मैं मोबाइल रखता हूं, मैं गाड़ी रखता हूं तो मैं आज इसी दिन से छोड़ने को तैयार हूं पर एक समाज, एक संस्था, एक व्यक्ति यह जिम्मेदारी आज ले ले कि पूज्य सागर महाराज, आपके आहार और विहार की जीवन भर की व्यवस्था मैं करता हूं तो उस दिन के बाद अगर आप मेरे पास फोन देखें तो आप मुझे कपड़े पहना देना। और नहीं है तो फिर आप यह कहने के अधिकारी नहीं हो। पूरे हिंदुस्तान में 1400-1500 दिगंबर साधु हैं। आज आपको यह संकल्प करना है कि हम अपने जीवन में कई गांवों के साथ मिलकर एक-एक साधुओं को गोद लेंगे। आज आप इस सत्य को स्वीकर करना, तभी आपकी अंर्तात्मा आपको गवाही देगी कि वास्तव में साधु ऐसा क्यों करता है। उस साधु की जगह अपने आपको रख कर देखना। तो आज अक्षय तृतीया के दिन हम यह संकल्प लें कि किसी की निंदा करने की बजाय हम उसकी व्यवस्थाओं में जुट जाएं। इसके बाद हम उन साधुओं को कहने का अधिकारी हैं कि महाराज जी आप मोबाइल न रखो, महाराज जी आप गाड़ी मत रखो। आपके आहार-विहार की व्यवस्था हमारा समाज करेगा।
मेरी इस अंतरपीड़ा से किसी को बुरा लगा हो, किसी का मन दुखी हुआ तो उसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूं।

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