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पवित्र मन से बड़ा कोई मित्र नहीं और मन के पाप से बड़ा कोई शत्रु नहीं- आचार्यश्री अनुभवसागर जी महाराज

लोहारिया ,18 जुलाई 2020 । श्री विमल भरत सभागार में प्रातः कालीन स्वाध्याय के दौरान युवाचार्यश्री अनुभवसागर जी महाराज ने कहा कि संसार में आज तक जितना दुख हमें दिख रहा है वह जितना मन की मलिनता के कारण है उतना वचन और काय की दुष्प्रवृत्ति से नहीं है! मन का असंतुलन जीवन को पतन की ओर ले जाता है क्योंकि जिसे मन को संयमित करना नहीं आ पाता वह कितना भी बलवान हो मन की मर्जी के आगे तो धरासायी हो जाता है ।
आचार्यश्री से किसी ने पूछा कि आचार्य भगवन हमने बहुत मंत्र फेर लिए पर फिर भी कोई लाभ नहीं हो पा रहा तब गुरुदेव ने कहा कि भाई मंत्र में बहुत शक्ति होती है परंतु मन से बड़ी कोई शक्ति नहीं! पवित्र मन से जो कुछ भी प्रार्थना की जाती है वह अवश्य पूर्ण होती है! पवित्र मन से बेहतर कोई मित्र नहीं होता और अगर वास्तविकता मैं अगर कोई हमारा सबसे बड़ा शत्रु है तो वह है हमारे मन का पाप! मन उस पानी की तरह है जो यदि गन्ने के खेत में पड़ जाए तो मिठास में बदल जाता है समुद्र में पड़ जाए तो खारेपन में बदल जाता है । मिट्टी पर पड़ जाए तो कीचड़ बन जाता है स्वाति नक्षत्र में सीप के मुख पर पड़ जाए तो मोती बन जाता है और सर्प के मुख पर चला जाए तो विष बन जाता है । मन भी ऐसा ही है अतः मन के गुलाम बनने की जगह है मन को अपना मित्र बनाएं क्योंकि वह आपको आपकी परिणति के अनुसार ही सहयोग करेगा! मन कहो या ह्रदय दोनों शब्दों में एक भी दीर्घ मात्रा नहीं परंतु संसार की वृद्धि कहो या संसार से मुक्ति उसमें सबसे प्रमुख साधन बनता है मन तभी तो संत कहते हैं । संयमित मन ही मित्र है और मंत्र भी।

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