प्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र कुंडलपुर में मुनि श्री विराट सागर जी महाराज ने मंगल प्रवचन देते हुए कहा कि संपूर्ण प्रकृति का अगर कोई मूल तत्व है जिससे संपूर्ण प्रकृति संचालित होती तो वह तत्व प्रेम और वात्सल्य है। सब कुछ है मानव श्रृंखला के पास, मानव-मानव से कभी अटैच नहीं हो पाएगा तो उसका मन लग ही नहीं पाएगा यदि उसके अंदर प्रेम नहीं है। धर्म का संचालन, अनुशासन से होता है।पढि़ए राजीव सिंघई मोनू की रिपोर्ट ……
कुंडलपुर। सुप्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र कुंडलपुर में मुनि श्री विराट सागर जी महाराज ने मंगल प्रवचन देते हुए कहा कि संपूर्ण प्रकृति का अगर कोई मूल तत्व है जिससे संपूर्ण प्रकृति संचालित होती तो वह तत्व प्रेम और वात्सल्य है। सब कुछ है मानव श्रृंखला के पास, मानव-मानव से कभी अटैच नहीं हो पाएगा तो उसका मन लग ही नहीं पाएगा यदि उसके अंदर प्रेम नहीं है। धर्म का संचालन, अनुशासन से होता है। प्रेम नहीं तो क्या आप चार कदम धर्म की राह पर चल पाएंगे, असंभव सा प्रतीत होता है। कली काल है, सब जानते हैं जिस राह पर आगे बढ़ रहे हैं मंजिल दिखाई तो देती है पर वहां पहुंच नहीं पाएंगे, रास्ता अवरूद्ध है फिर भी उस पर चले जा रहे हैं हमें आत्मा से लगाव और प्रेम है, संपूर्ण व्यवस्थाओं को सही रूप से चलाना है तो एक दूसरे के प्रति गहरा वात्सल, प्रेम एवं स्नेह होना जरूरी है। एक गुरु की संतान हैं, सभी मुट्ठी बांधकर एक प्रेम की तरह, कुटुंब की तरह रहें तो हमारा विश्वास है जिस तरह गुरु जी के शासनकाल में संघ ने महती प्रभावना की थी उससे कहीं ज्यादा यह संघ आज प्रभावना कर सकता है। उसकी नींव और उसका मूल मंत्र है आपसी प्रेम। शास्त्र तो ज्यादा मैंने नहीं पढ़े किन्तु गुरु की आज्ञा, आगम की आज्ञा शिरोधार्य है। सबको सुनने के बाद, सबकी सुनने के बाद यदि कोई लू लपट करता है तो वह क्या आज्ञा सम्मत पालन करता है।
गुरु तो मन में विराजमान हैं और सदा रहेंगे
गुरु तो मन में विराजमान हैं और सदा रहेंगे, अंतिम साँस तक। क्या सोच रहे हो, सोचने का तो प्रश्न ही नहीं होना चाहिए जो कह दिया स्वीकार है। जब तक प्रेम बंधन नहीं जागेगा, तब तक अनुशासन एक कदम आगे नहीं बढ़ सकता। सबकी ड्यूटी बनती है हर पिच्छी धारी की कि जो संघ का अनुशासन गुरु महाराज के समय से चला आ रहा है अंतिम सांस तक वह अनुशासन चलता रहे। गुरु महाराज ने सबके सामने एक माला का निर्माण किया था वह माला एक सूत्र में चलती है तो सारे मोती साथ में है। सबका कर्तव्य है जिस दिन गुरु चरणों में पहली बार आए थे और अपना संपूर्ण समर्पण उनके चरणों में प्रेषित कर दिया था कि आज से मेरा जीवन आपका है, आप जैसा चलाएंगे चलते चले जाएंगे। गुरु ने उपकार किया, जिसने जो मांगा उसको वह दिया, जो भव्य जीव चरणों में आया और गुहार लगाई, वैसा ही बनाने का प्रयास किया। आज हमारे बीच में उनकी प्रतिछाया विराजमान है उनकी हर आज्ञा हर पिच्छी धारी को शिरोधार्य करनी चाहिए, किंतु परंतु के लिए कोई स्थान नहीं है, आचार्य महाराज सामने विराजमान हैं।
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