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गर्मी में मुनि के साथ विहार कर रहे हों तो गर्मी नहीं लगतीः आचार्य श्री सुन्दर सागर जी महाराज

  • जब मन खाने से हटता है तो भूख नहीं लगती

न्यूज सौजन्य – कुणाल जैन

प्रतापगढ़। आचार्य श्री सुन्दर सागर जी महाराज ने धर्मप्रेमी श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए कहा है कि भगवान महावीर की वाणी सबका कल्याण करने वाली है। ऐसी जिनवाणी सदैव जयवन्त हो। कषाय भाव सुख भी दे रहा है और दुख भी देता है। जो अग्नि भोजन बनाने के काम में आती है, वह जलाती भी है। गर्मी में मुनि के साथ विहार कर रहे हों तो गर्मी नहीं लगेगी क्योंकि आपने मुनिराज के साथ एकत्व स्थापित कर लिया है। आचार्य जी ने एक उदाहरण देते हुए अपनी बात स्पष्ट की कि यदि खाना खाना खाने से ही भूख शांत होती तो राज खाना ही खाना पड़ता। जब मन खाने से हटा तो भूख नहीं लगती। जिन लोगों को बाहर का खाने की आदत लग गई है, उन्हें चौके का भोजन अच्छा नहीं लगता।
आचार्य श्री सुन्दर सागर जी महाराज ने धर्मप्रेमी श्रद्धालुओं को सम्बोधन में आगे कहा कि जिस गर में मुनिराज का आहार नहीं होता, वह घर श्मशान के बराबर है। एक ग्रंत में लिखा है-सुख-दुख मेरा नहीं, पर जब मैं किसी से राग करता हूं तो मैं, मेरी आत्मा के स्वभाव में परिवर्तन करता हूं। तो यह कषाय मेरी होती है। यदि आपने अपनी आत्मा के अंदर यह स्थापित कर लिया कि ये राग-द्वेष, कषाय मेरा नहीं है तो एसी करंट भी एसी जैसा ठंडा लगेगा। और राग-द्वेष, कषाय को अपना माना तो एसी ठंडक में भी एसी का करंट लगेगा।

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