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धर्म खोजने से नहीं मिलेगा, स्व पुरुषार्थ से होगा प्राप्त – आचार्य श्री विशुद्ध सागर महाराज

धर्म खोजने से नहीं मिलेगा, स्व पुरुषार्थ से होगा प्राप्त – आचार्य श्री विशुद्ध सागर महाराज

 

रायपुर (राजेश जैन दद्दू)। सन्मति नगर फाफाडीह में शुक्रवार को चूड़ीलाइन दिगंबर जैन मंदिर के लिए आयोजित पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महामहोत्सव संपन्न हुआ। आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने अपनी मंगल देशना में कहा कि धर्म मौन है, मूक नहीं है। मूक पराधीन होता है, मौन स्वाधीन होता है। जो बोलना चाहते हैं, बोल नहीं पाते।

वे मूक होते हैं और जो बोलना जानते हैं लेकिन बोलना नहीं चाहते, वे मौन होते हैं। मित्रों धर्म चुनने के पहले धर्म को समझ लेना। वे पुण्य आत्मा है जिन्हें किशोरावस्था के प्रारंभ में ही अच्छे लोग मिलते हैं। ऐसे ही धर्म के परिणाम आए और उसे अच्छे धर्मात्मा मिल जाए तो वह महापुण्यात्मा होगा। ज्ञानियों धर्म खोजने से नहीं मिलेगा, निज में खो जाओ आत्म धर्म मिल जाएगा।

आत्म धर्म स्व पुरुषार्थ से प्राप्त होता है। आचार्यश्री ने कहा कि धर्म करने की आकांक्षा व परिणाम अचानक व्यक्ति के मस्तिष्क में आता है। जैसे किशोर अवस्था ढलान की अवस्था है, इसे संभाल लिया तो साधु बन जाओगे और नहीं संभाल पाए तो डाकू बन जाओगे। वे किशोर पुण्यात्मा हैं, जिन्हें किशोरावस्था आते ही सदसंगति प्राप्त हो जाए, अन्यथा विषमी के हाथ में अवस्था पड़ गई तो पूरे जीवन का नाश करा देगा। किशोर अवस्था मोड़ का समय है।

व्यक्ति को जीवन में एक बार धर्म करने का परिणाम आता है। जब धर्म का परिणाम आता है तो तत्काल में कैसे लोग मिल रहे हैं, यह बहुत कठिन साधना है। आचार्यश्री ने कहा कि धर्म नाम समान हैं, अनुष्ठान बहिरंग एक से दिखते हैं, लक्ष्य अलग-अलग होता है। जब लक्ष्य भिन्न है तो थोड़ी देर बाद आपको लक्षण भी भिन्न दिखेगा। जिसका लक्ष्य भिन्न होता है, उसका लक्षण भी भिन्न होता है।

जीव जब थकने लगता है, चाहे विषय कषाय से, चाहे उम्र से थके अथवा विरक्त संसार से उदास हुआ है, उस काल के नियोग का सम्यक मिलना बहुत महत्वपूर्ण है। योग्यता आपके पास है, आपके पास प्रतिबंधक कारणों का अभाव है, लेकिन निमित्त कैसे मिल रहे, यह महत्वपूर्ण है क्योंकि आपको तो धर्म करना है। आचार्य श्री ने कहा कि आपको अचानक वैराग्य होने लग गया, अचानक विरक्ति खड़ी हो गई, दीक्षा के परिणाम आने लगे हैं तो गुरु को पहचान लेना। धर्म करने के परिणाम हुए हैं तो धर्म को पहचान लेना।

स्वाध्याय करने के परिणाम हुए हैं तो शास्त्रों को पहचान लेना। प्रारंभ में मटका उल्टा रखा हो तो अंत तक मटका उल्टा ही रखना पड़ेगा और यदि प्रारंभ में सीधा रखा है तो अंतिम कलश भी सीधा ही रहेगा। जो भी धर्म स्वाध्याय, वीतराग मार्ग को चुनना चाहते हैं, उन्हें सीधा कलश देखना चाहिए। जो विपरीत मार्ग पर चले जाएंगे, उन्हें जीवन की अंतिम श्वास तक विपरीत मार्ग का ही पोषण करना पड़ेगा। आचार्य श्री ने कहा कि आज समय कितना विपरीत हो गया है।

बच्चों की गलती के कारण परिवार आजीवन रोता है। कन्याओं को वर ही चुनना है तो चेहरा मत चुनना, धर्म और कुल चुनना। क्षण मात्र का प्रभाव देखकर किसी धर्म में प्रवेश मत ले लेना। तात्कालिक वक्ता को देखकर दीक्षित मत हो जाना। जिस धर्म में मेरी आत्मा कल्याण निहीत हो, भगवान आत्मा की व्याख्या हो, पांच पापों के पृथक होने का जहां उपदेश किया गया हो, अंतिम लक्ष्य सिद्धि हो, उसी धर्म को चुनना।

आज मुख से अहिंसा की व्याख्या तो होती है लेकिन मुख में अहिंसा नहीं होती। मात्र भेष ही नहीं बदलना चाहिए, भोजन भी बदलना चाहिए, भाषा भी बदलना चाहिए और मन भी बदलना चाहिए, इसी का नाम दीक्षा है। आचार्य श्री ने यह भी कहा कि शांति का वेदन करने का बोध होना चाहिए। जरा सी आवाज सभा की शांति भंग कर देती है। घर में एक कमरा ऐसा होना चाहिए, जहां पूरा परिवार बैठकर मौन ले।

जब बैठकर एक साथ भोजन, भजन और वार्ता कर सकते हो तो एक साथ बैठकर शांत क्यों नहीं रह सकते? वहां न हंसना, न खांसना, न चिल्लाना। मनुष्य बने हो तो मरने के पहले कभी एक दिन मनुष्य की शांति का वेदन तो करके जाना, यही प्रवचन है। आपने मौन ले लिया तो कितना आनंद आएगा, जो मुनि बनकर मौन रहता है वो परमानंद को प्राप्त होता है।

रथ में पहुंचे भगवान

प्रतिष्ठाचार्य पंडित डॉ.अजीत शास्त्री ने बताया कि शुक्रवार को प्रातः 6 बजे भगवान आदिनाथ जी का अभिषेक, शांति धारा एवं नित्यमय पूजन संपन्न हुआ। इसके उपरांत भगवान का कैवल्य ज्ञान का पूजन विधान हुआ। 7:30 बजे आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी ससंघ सानिध्य में मोक्षकल्याणक की क्रियाएं संपन्न हुईं।

इसके बाद विश्व शांति महायज्ञ संपन्न हुआ। तत्पश्चात आचार्यश्री के मंगल प्रवचन हुए। मंगल देशना के बाद आचार्यश्री की आहार चर्या हुई। मध्याह्न में 1 बजे से गणधर वलय विधान हुआ। इसमें दीक्षार्थी भाइयों के द्वारा पूजन-अर्चन इत्यादि किया गया। इस विधान के पश्चात आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने अपनी मंगल देशना से धर्मसभा को आशीर्वाद दिया। इसके पूर्व दोपहर में भगवान को रथ में विराजित कर भक्त बाजे-गाजे के साथ चूड़ीलाइन दिगंबर जैन मंदिर पहुंचे। यहां सभी प्रतिमाओं को विराजित किया गया।

 

प्रभु आदिनाथ की शिक्षा अपनाकर करें उद्धार

पंडित ऋषभ शास्त्री राजिम ने बताया कि प्रातः शुभ मेला में अभिषेक व शांति धारा के पश्चात आदिनाथ प्रभु से जन-जन के कल्याण के लिए प्रार्थना की गई। जब भगवान आदिनाथ कैलाश पर्वत पर ध्यान में आरूढ़ थे, तभी उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो गई थी।

भगवान आदिनाथ प्रभु ने जीवों के कल्याण के लिए उस मार्ग का उपदेश दिया था,जो समूचे विश्व में आज भी कार्यकारी है और उन्हीं की शिक्षाओं को लेकर देश के विकास में अनेकों कार्य संपन्न हुए हैं। उन्होंने नारी शक्ति, नारी सम्मान का बहुत उपदेश दिया है। इसका अनुसरण करके हमें अपने के उद्धार के लिए त्याग और तपस्या को अपनाना चाहिए, यही शिक्षा देकर प्रभु आदिनाथ मोक्ष को पधारे थे।

 

प्रतिष्ठा महामहोत्सव और विश्व शांति महायज्ञ संपन्न

पंडित हरीशचंद्र शास्त्री ने बताया कि शुक्रवार को चूड़ीलाइन दिगंबर जैन मंदिर में तीन मुनिराजों द्वारा भगवान के कैवल्य ज्ञान एवं मोक्ष गमन के सभी संस्कार संपन्न हुए। साथ ही शिखर पर कलशारोहण एवं ध्वजारोहण हुआ। पुरानी बेदियों से नवीन बेदियों में श्रीजी को विराजमान किया गया। मुनिश्री ने अपने उपदेश में कहा कि प्रभु की भक्ति करोगे तो अपने जीवन को सफल बना सकते हो एवं संसार के सभी दुखों से हट सकते।

पंडित जी ने बताया कि पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महामहोत्सव 31 अक्टूबर से प्रारंभ होकर 4 नवंबर को संपन्न हुआ। इसी तरह 5 दिवसीय विश्व शांति महायज्ञ भी शनिवार को संपन्न हुआ। विश्व की शांति व जन-जन के कल्याण के लिए सकल दिगंबर जैन समाज ने महायज्ञ में आहुति दी।

 

पांच को आचार्यश्री ससंघ करेंगे पिच्छीका परिवर्तन

विशुद्ध वर्षा योग समिति के अध्यक्ष प्रदीप पाटनी व महामंत्री राकेश बाकलीवाल ने बताया कि मुनि संघ का पिच्छीका परिवर्तन समारोह पांच नवंबर को दोपहर दो बजे होगा।

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