कथा सागर समाचार

कथा सागर - 2: दूसरों से तुलना ठीक नहीं

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– प्रियंका संजय सेठी

बहुत पुरानी बात है। एक कौआ था। वह सोचने लगा कि पक्षियों में मैं सबसे ज्यादा कुरूप हूं। न तो मेरी आवाज ही अच्छी है, न ही पंख सुंदर। मैं काला-कलूटा भी हूं। ऐसा सोचकर उसके अंदर हीनभावना भरने लगी और वह दुखी रहने लगा। एक दिन एक बगुले ने उससे उसकी उदासी का कारण पूछा।

कौआ बोला-– तुम कितने सुंदर हो, गोरे-चिट्टे हो, मैं तो बिल्कुल स्याह वर्ण का हूं। मेरा तो जीना ही बेकार है। बगुला बोला – दोस्त मैं कहां सुंदर हूँ। मैं जब तोते को देखता हूं, तो यही सोचता हूं कि मेरे पास हरे पंख और लाल चोंच क्यों नहीं है। अब कौए में सुन्दरता को जानने की उत्सुकता बढ़ी।

वह तोते के पास गया। बोला – तुम इतने सुन्दर हो, तुम तो बहुत खुश होते होगे? तोता बोला- खुश तो था लेकिन जब मैंने मोर को देखा, तब से बहुत दुखी हूं, क्योंकि वह बहुत सुन्दर होता है। कौआ मोर को ढूंढने लगा, लेकिन जंगल में कहीं मोर नहीं मिला। जंगल के पक्षियों ने बताया कि सारे मोर चिड़ियाघर वाले पकड़ कर ले गए हैं।

कौआ चिड़ियाघर गया, वहां एक पिंजरे में बंद मोर से जब उसकी सुंदरता की बात की, तो मोर रोने लगा। और बोला – शुक्र मनाओ कि तुम सुंदर नहीं हो, तभी आजादी से घूम रहे हो वरना मेरी तरह किसी पिंजरे में बंद होते।

शिक्षा:-दूसरों से तुलना करके दुःखी होना बुद्धिमानी नहीं है। असली सुन्दरता हमारे अच्छे कार्यों से आती है।

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